कविता

श्रद्धा सुमन

 

सहसा विश्वास नहीं हुआ

अभी कुछ मिनट पहले तक

तनिक आभास भी न था,

अचानक ऐसा क्या हुआ

कि अचानक आपने मुंह मोड़ लिया

अपने बच्चों को बिलखता छोड़

हम सबसे ही मुंह मोड़ लिया।

सच कहें या शिकायत जो भी समझें

पर आपका यूं आंखें फेर लेना

किसी को अच्छा नहीं लगा,

हम सबको आपका यूं आंखें मूंद

चुपचाप चले जाना टीस दे गया।

दुख तो इसका भी है कि आपने

खुद ही आश्वस्त भी किया था

खुद ही उम्मीदों को पंख भी दिया था

और फिर खुद ही अरमान तोड़ दिया।

अभी कितने दिन हुए जब आपने

एक वादा खुद ही किया था हमसे

अब अपना वादा ही याद न रहा

और आप अनंत यात्रा पर निकल गये।

हम सबको ये वादाखिलाफी रुलाएगी

आपकी याद तो हमें हमेशा ही आयेगी

अगली मुलाकात की तो हम बाट ही जोहते रहे

बस एक मुलाकात ही इतिहास बनकर रह गए।

आंखों से चुपचाप ओझल हो गये तो क्या हुआ?

इस तरह मुंह मोड़ बंधन तोड़ आखिर मिला क्या?

आपकी छवि हमें अपने आसपास ही नजर आयेगी,

पता भी है आपको तब हमारी आंखें भीग जायेंगी।

अपनी भूलों का भी अहसास हम आज कर रहे हैं,

क्षमा याचना संग अपने श्रद्धासुमन भेंट कर रहे हैं।

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921