धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आजकल धर्म अंधश्रद्धा और कट्टरवाद का दूसरा नाम है

मानवता धर्म है, भाईचारा धर्म है, प्रेम धर्म है परवाह धर्म है। पर आजकल धर्म की परिभाषा ही बदल गई है मार-काट धर्म है, अंधश्रद्धा और भ्रम फैलाना धर्म है, धर्म के नाम पर राजनीति और जेहादी बनकर जंगलियत फैलाना धर्म है। धर्म आजकल अफ़िमी नशे जैसा बन गया है धर्म के नाम पर अनुयायिओं ने समाज में क्या-क्या बदी फैला रखी है।
धर्म की क्षितिज बड़ी झीनी है, पारदर्शि और नाजुक। प्रत्येक व्यक्ति धर्म की अलग-अलग परिभाषा करता है। विद्वान लोग ग्रंथों से सार निकालकर लोगों को धर्म के अलग-अलग रुप बताते है और सभी की परिभाषा में विरोधाभाषा की भरमार देखी जाती है। दरअसल धर्म को समझे बिना ही धर्म का मूल्यांकन किया जाता है।
धर्म मानव में श्रेष्ठ गुणों का संचार कर उसे सभ्य बनाता है। लेकिन साथ ही देखा जाता है कि धर्म मानव को आगे बढ़ने में बाधाएँ भी उत्पन्न करता है। मनुष्य जाति पर इसका सबसे बुरा प्रभाव यह देखने में आया है कि यह मनुष्य को कट्टरपंथी, असहिष्णु, अज्ञानी, अंधविश्वासी और रूढ़िवादी बना देता है।
धर्मनिरपेक्षता को अक्सर नास्तिकता के साथ गलत समझा जाता है। ये शब्द दुनिया भर में बहुत भ्रम पैदा करते है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी धर्म या धार्मिक अवशेषों की अनुपस्थिति या अमान्यता नहीं है। यह धार्मिक समूहों की स्वतंत्रता को संदर्भित करता है जहाँ कोई भी दूसरे पर दबाव या प्रभुत्व नहीं डाल सकता है। जब भी कहीं धर्म की बात आती है वहाँ धर्म को समझे बिना विद्रोह की मशाल लेकर निकल पड़ते है कुछ लोग।
जीवन जीने के लिए धर्म को समझना जरूरी है, पर धर्म क्या है ? हम धर्म की परिभाषा किसे कहतै है ? दान, पुण्य, भगवान का नाम लेना, निरंतर माला जपना ? शायद हाँ हम सबकी नज़रों में यही धर्म है। असल में किए हुए कर्मो को धोने मन की शांति के लिए ये सब करना और सांसारिकता निभाना जरूरी है। रोटी का जुगाड़, बच्चे पैदा करना, पालना, रिश्ते निभाना भी जरूरी है। ज़िम्मेदारीयां निभाना सांसारिक धर्म है।
पर…..सही में संसार में रहकर खुद को ढूँढना, मृत्युबोध समझना, ज़िंदगी का सही मायना समझ कर भीतर के अंधकार को दूर करके मानवीय संवेदना को उभार कर मानवता निभाना और मृत्यु से अमृत तक के सफ़र में शुद्ध आचरण और सद्विचार के साथ आगे बढ़ना धर्म की सही परिभाषा है।
धर्म लोगों को संगठित करने का कार्य करता है। और भाईचारे की भावना के साथ समाज को समग्र विकास के पथ पर अग्रसर करता है। सामाजिक एकता को बढ़ाना विश्व के सभी धर्मों की स्थापना का मूल उद्देश्य है। पर आजकल धर्म को समझे बिना ही हर मुद्दे को धर्म के नाम पर भड़ाकाया जाता है। और जहाँ धर्म का नाम उठता है लोग खुद को धर्म के ठेकेदार समझते नंगी तलवार लेकर कुद पड़ते है। पर इस पंक्ति को कोई याद नहीं करते कि “मज़हब नहीं सीखाता आपस में बैर रखना”
यतो ऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः।
धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है, जिसमें लौकिक उन्नति तथा आध्यात्मिक परमगति दोनों की प्राप्ति होती है।
हाथों के कर्मो से अधिक मन के कर्मो पर ध्यान देंगे तो पता चलेगा। किसीके प्रति एक खराब ख़याल भी धर्म के विरुद्ध  होगा। बुरा करना जितना गलत है उतना ही बुरा सोचना भी। स्वर्ग-नर्क जैसा कुछ नहीं कौन मरकर वापस आया है और मरने के बाद का विवरण किया। ग्रंथों के आधार पर सारी मान्यताएं टिकी है। पाप पुण्य का हिसाब लगाए बिना धर्मांधता को छोड़ कर जो सारे कर्म आत्मा की शुद्धि और समाज कल्याण हेतु हम करते है सही में वो धर्म है।
निम्न से लेकर विराट के भीतर एक रुप समाया है, एक शक्ति समाई है, उस परम तत्व को पाना दैहिक धर्म है आत्मा की गति है।
धर्म की आड़ लेकर जेहादीपन के पीछे भागना व्यक्ति का खुद का पतन है। धर्म के नाम पर हिंसा फ़ैलाना समाज का पतन है। जो लोग ये करते है ऐसे लोग पशु की भाँति ज़िंदगी ढो रहे होते है।
पर संसार में रहकर खुद के कल्याण के साथ-साथ जो समाज के प्रति अपना नैतिक कर्तव्य बजाते है उसने सही मायने में धर्म को समझा है और सही में वही ज़िंदगी जी रहे होते है।
हमने पिछले कुछ वर्षों में जिस समाज-व्यवस्था को, प्रगति को और  औद्योगीकरण को धर्मनिरपेक्षता के आधार पर निर्मित किया दुर्भाग्यवश वह उस आदर्श से बहुत दूर है जिसे कभी इस शताब्दी के आरंभ में हमारे धार्मिक और राजनीतिक मनीषियों ने देखा था। आज हालत यह है कि हमारा समाज धर्म की क्षितिज पर डूब रहा है। कार्ल मार्क्स के शब्दों में धर्म दलित वर्ग की आह है, निर्दयी विश्व की भावना है और निष्प्राण स्थितियों की आत्मा है। आजकल धर्म  जनता के लिए अफ़ीम का काम करता है।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर

One thought on “आजकल धर्म अंधश्रद्धा और कट्टरवाद का दूसरा नाम है

  • नितिन कुमार शर्मा

    धर्म को लेकर वास्तव और छद्म व्यवहार में अंतर आपके इस लेख से प्रकट होता है,सही मायने में धर्म के प्रति आपका दृष्टिकोण बताता है,की धर्म की वास्तविक परिभाषा को किस तरह देखा जाना चाहिए

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