ये बात दीगर है कि चारागर को खुद ही पता न हो कोई दर्द ऐसा बना नहीं जिसकी जहां में दवा न हो चाहता हूँ मैं इश्क़ में आए मेरे ऐसा मुकाम तू चाहे जितने कर सितम मुझे तुझसे कोई गिला न हो दुश्मन भी होते हैं ज़रूरी दोस्तों के साथ – साथ वहां कैसे […]
Author: *भरत मल्होत्रा
ग़ज़ल
कभी जिसकी हुकूमत थी सातों आसमानों तक इश्क है अब वो महदूद जिस्मों की दुकानों तक चर्चे हैं बहुत जिनके हवाएं वो तरक्की की देखें कब तक आती हैं गरीबों के ठिकानों तक वो आए भी तो कैसे रास्ता ही जब नहीं कोई उस पक्की हवेली से इन कच्चे मकानों तक वो कहते हैं कि […]
ग़ज़ल
चढ़ान ही नहीं फकत उतार भी है ज़िंदगी साया-ए-दीवार भी है, दार भी है ज़िंदगी मुतमईन भी हूँ, चाहतें भी ज़िंदा हैं कई करार भी है, थोड़ी बेकरार भी है ज़िंदगी छोड़ कर अधूरी मुलाकात चल दिए थे जो उनके लौटने का इंतज़ार भी है ज़िंदगी ज़रूरतों और ख्वाहिशों के दरमियान डोलती कभी है प्यार […]
ग़ज़ल
ढाए हैं हम पे दुनिया ने कुछ ऐसे सितम भी लगने लगे हैं एक से कातिल भी, सनम भी महफिल में तेरी रोशनी कहीं हो ना जाए कम जलते रहे चिरागों के संग शाम से हम भी रोशन सितारे कितने ही हुए सुपुर्द-ए-खाक रखा नहीं है वक्त ने किसी इक का भरम भी दीवार-ओ-दर सब […]
ग़ज़ल
बेमकसद मुस्कुराना कभी उदास होना भी कभी उम्मीद रखना भी कभी बेआस होना भी गम मुझको नहीं है सिर्फ तुझसे दूर होने का है तकलीफदेह औरों का तेरे पास होना भी कोयला भी बदल जाता है वक्त के साथ हीरे में धीरे-धीरे मुमकिन है आम से खास होना भी बिछड़ के तुझसे गुज़रेगी उम्र कैसे […]
ग़ज़ल
आगाज़ तो हो जाए अंजाम तक ना पहुंचे जब तक मेरी कहानी तेरे नाम तक ना पहुंचे तेरे आने से उजाला फैला है हरसू लेकिन ये सुबह धीरे-धीरे कहीं शाम तक ना पहुंचे कभी उनसे सिलसिले थे दिन-रात गुफ्तगू के अब सदियां गुज़र जाएं पैगाम तक ना पहुंचे मयकशी के दरिया में जो डूबा फिर […]
ग़ज़ल
किसी के लब पे तेरा नाम बुरा लगता है, गैर कोई दे तुझे पैगाम बुरा लगता है कहा है तुमसे कई बार इशारों में मगर, आज कहता हूँ सरेआम बुरा लगता है, खबर है जानते हैं सब तुम्हें शहर में पर, तेरा सबसे दुआ-सलाम बुरा लगता है, बीत जाता है दिन उलझनें सुलझाने में, जब […]
ग़ज़ल
निगाहें मिलाना, मिलाकर झुकाना मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है अकेले बिना बात के मुस्कुराना मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है बेचैन हैं दिन, हैं बेताब रातें करने को बाकी हैं कितनी ही बातें मगर उसके आते ही सब भूल जाना मुहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है मासूम फूलों […]
ग़ज़ल
इश्क में तेरे कुछ ऐसे मर मिटा हूँ मैं तू ही तू है मुझमें अब कहाँ बचा हूँ मैं उगेगा पानियों के दरख्तों का दश्त कल तेरी गली में अश्क थोड़े बो चला हूँ मैं तमन्ना तुझसे मिलने की दिल में लिए हुए आग में तन्हाई की बरसों जला हूँ मैं दीवाने तेरे और भी […]
ग़ज़ल
कोई नगमा गुनगुनाकर ज़रा सा इश्क रख देना अश्क दो-चार बहाकर ज़रा सा इश्क रख देना रूह मेरी सुकूं पा जाएगी इतने में ही दिलबर तुम मेरी कब्र पर आकर ज़रा सा इश्क रख देना फैलाऊँ हाथ मैं जब भी दुआओं में तेरे आगे मेरे हाथ में लाकर ज़रा सा इश्क रख देना जहां रखी […]