गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

भारत के लोकतंत्र का अपना उसूल है हित में प्रजा के तंत्र को सब कुछ कुबूल है धाराएँ संविधान की बदली गयीं मगर जनहित ही संविधान की धारा का मूल है संकल्प शक्ति अपनी ही कुछ क्षीण हो गयी गणतंत्र वरना अपना तिरंगा त्रिशूल है सत्यं शिवं से सुन्दरं यूँ ही नहीं जुड़ा कल्याणकारी भाव […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो मुझे अपना लगे क्या कीजिए आप उसके हैं तो बतला दीजिए मैं जहाँ जाता हूँ वो पीछा करे क्यूँ न उसकी इस अदा पर रीझिए सामने आए तो कोई बात हो ऐसे आशिक का भला क्या कीजिए मेरी हर धड़कन में रहता है वही कैसे कोई साँस उस बिन लीजिए वो हो अमृत या […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सुनो पहले, विचारो बाद में, देखो, न कुछ बोलो अगर है लाजमी कुछ बोलना, शब्दों में रस घोलो बस इतनी देर से अल्फाज तुमको ढूँढ़ ही लेंगे फिर इसके बाद तोड़ो मौन या फिर मौन के हो लो प्रकृति सब छीन लेती है कभी संचय नहीं करना उसी पल उसको लौटा दो किसी से भी […]

गीतिका/ग़ज़ल

गजल

तुम महापुरुषों के जीवन पे नजर डालो भी दिल के आईने में फिर देर तलक झाँको भी मत अपेक्षा करो जीवन में चमत्कारों की अपने अस्तित्व की सच्चाई को पहचानो भी प्यास सच्ची है तो मृगतृष्णा से बाहर निकलो तुम भगीरथ हो तो गंगा कोई प्रकटाओ भी कर्म ही से महापुरुषों को जाना जग ने […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खिलाकर फूल महकाकर सजायी जिसने फुलवारी समर्पित क्यों न कर दें हम उसी को जिन्दगी सारी सुबह से शाम तक आठों पहर जो साथ रहता है मेरे अगले सफर की करके जो बैठा है तैयारी जिसे देखे बिना पलभर भी चुप रहता नहीं ये दिल छटा उस रूप की सोचो जरा क्यों कर न हो […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मैंने जाना ही नहीं दिल का तकाजा क्या है और जो दिल में छिपी है वो तमन्ना क्या है मैं जिधर देखूँ मुझे तू ही नजर आए है तू ही मुझमें है तो फिर छिपता छिपाता क्या है तेरी मरजी के मुताबिक ही उठाता हूँ कदम अब तो बतला दे तेरा ठौर-ठिकाना क्या है प्यास […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरी गजल के हर इक शेर में उजाला है हर एक लफ्ज को मैंने लहू में ढाला है गजल को कहना मेरे वास्ते इबादत है कहीं ये शेरों में मस्जिद कहीं शिवाला है महक उठेंगे मेरे शेर जिसको छूते ही मेरी गजल में वो उन्वान आने वाला है हृदय में राधा के हर वक्त कृष्ण […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मैं चाहकर भी तुझसे खफा हो नहीं सकता दामन है तार-तार मगर रो नहीं सकता सपनों में अभी रंग भी पूरे कहाँ भरे नाराज करके नींद को मैं सो नहीं सकता कोरी वफा के तन पे लगी है भरम की छाप ये दाग आँसुओं से भी मैं धो नहीं सकता मासूम सा बच्चा जो पिता […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जब खुदा होने का इक बुत को गुमाँ होता है हार और जीत का अहसास कहाँ होता है पालकी प्यार की पलकों में अचानक ठहरे जब भी बचपन का कोई दर्द जवाँ होता है मन को परतों को हटाकर वो कुछ ऐसे उभरा जैसे सूरज कोई बदली से अयाँ होता है वहीं जन्नत है वहीं […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अन्दर क्या है बाहर क्या है , चिन्ता किसको सोचे कौन ? भाग्य जिधर ले चला चल पड़े, कर्मयोग को देखे कौन ? एक आईना छोड़ सभी को , झूठ बोलते देखा है ; झूठ का दर्पण हाथ में हो तो, आईने को देखे कौन ? एक स्वाति की बूँद की धुन में, कब से […]