गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरा वजूद दर्द से ऐसे हिला कि बस
गम को मिला सुकून तो ऐसे लगा कि बस

मुमकिन है इस जनम में मुलाकात हो न हो
जुमला सपाट था मगर ऐसे कहा कि बस

वो चाहता है हर खता मैं ही करुँ कुबूल
मासूमियत से उसकी मैं ऐसे हँसा कि बस

वो कसमसा के रह गया अपने किये के बाद
हालात ने भी तंज कुछ ऐसे कसा कि बस

बच्चों से हम सहज-सरल पलभर को जब हुए
रिश्तों पे सार्थक असर ऐसे पड़ा कि बस

मुझको तो सिर्फ मौन पर अपने गुरूर था
मुझ पर उन्हें यकीन कुछ ऐसे हुआ कि बस

अपनी वफा को सिद्ध मैं करता भी किस तरह
सच से वहम का पर्दा कुछ ऐसे हटा कि बस

जन्मों के ‘शान्त’ हम सफर होते नहीं जुदा
दोनों ने ऐतबार कुछ ऐसे किया कि बस

— देवकी नन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ