लघुकथा – नालायक कपूत
” शर्मा जी तुम्हारे घर में जब देखो तब लड़ाई-झगड़ा होता रहता है ज़ोर- ज़ोर से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें आती
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Read Moreशाला की यादें सुखद,दें मीठे अहसास। शाला के दिन थे भले,थे बेहद ही ख़ास।। दोस्त-यार सब थे भले,जिनकी अब तक
Read Moreरूप दमकता नित्य ही,फैलाता आलोक। प्रिये आज तू चाँद है,देखे सारा लोक।। गालों पर आभा खिली,लुभा रहा है नूर। दाता
Read Moreहोते जो भी सुखद-दुखद पल,सबका चित्रण करता जीवन के बीते लम्हों को अंक में निज के भरता जिसका प्रियवर नाम
Read Moreकरो सुबह की सैर नित,दूर रहेंगे रोग। जीवन हो खुशहाल तब,दीर्घ आयु का योग।। सुबह मिले ताज़ी हवा,जो सचमुच वरदान।
Read Moreमंडला-साहित्यिक संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के “अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका” के पेज पर, ऑनलाइन अखिल भारतीय”
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