” सरकारें सांसत में ” !!
कृषकों ने हड़ताल करी है , सबके सब आफत में !! सब्जी भाजी घूरे होगी , दूध ढुले सड़कों
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Read Moreछाया , कृपा , निवास , निकेतन – हैं कुटीर , आवास घनेरे ! सबके मन में चाहत पलती
Read Moreजिंदगी चार दिन की है ना यूँ इतराओ तुम खुशी से जी लो हर पल को खुशी से गाओ तुम
Read Moreदहक रहे हैं दामन सबके , अब तो यह सब टलना होगा ! जंगल जंगल आग लगी है , कब
Read Moreमैंने देखा है संध्या के धुंधलके में उजास और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश- किसी क्षण में तो
Read Moreसमर्पण बढ़ रहा है प्रभु चरण में, प्रकट गुरु लख रहे हैं तरंगों में; सृष्टि समरस हुई है समागम में,
Read Moreरीता बन्धन , रीती गाँठे , मैं रीती या जग रीता !! दामन से जिसको बांधा था , छूट
Read Moreविरह वेदना के आँचल में ,कैसे तुझे छुपाऊँ मै कहने को तो मै माँ हूँ पर, तुझे बचा न पाऊँ
Read Moreले भारत फिर अंगड़ाई, उठ भारत ले अंगड़ाई सबसे पहले दहेज प्रथा का, तुझको कलंक मिटाना है बहुओं की रक्षा
Read Moreजंग लगे सारे विधान हैं , नव परिवर्तन लाना होगा ! शेरों को चिड़िया घर दे दो, बंदर वन पे
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