कविता

सिस्टम …….!

आये दिन लटकती लाशे

फूल बनने से पहले
दम तोड़ती कलियाँ
बलात्कार, चोरी , डकैती
हत्या , आतंकवाद रोजमर्रा
की ज़िंदगी में इस कदर घुल चुकी है
और सिस्टम चुप है खामोश है !
……।
हा हा हा हा सिस्टम
ही ही ही ही ये साला सिस्टम
किस चिडया का नाम है भाई
कोई सपना देख रहे हो क्या?
ये सिस्टम भी अब विलुप्त प्राय
प्रजाति के श्रेणी में आ चुका है
इसको बचाने के सारे प्रयास
असफल होते दिख रहे हैं!
बस यूँ समझो इसको अब
क्रॉस ब्रीड से भी सुरक्षित
रखना मुश्किल दिख रहा है!
बस इसको अब म्यूजियम
में स्थापित करना बाकि है
ताकि आने वाली पीढ़ी
को इसके बारे में बताना
आसान रहे, की ये हमारे
देश का सिस्टम था कभी
जो अपने जन्म से ही अपाहिज था,
जिसने आज़ादी से आज तक
अपनी उपस्थति को दर्शाने की
एक नाकाम कोशिश की,
अंततः ये सफल नही हो पाया
और ये अपनी ही मौत मारा गया!
इसकी मौत के बाद हमें दूसरे
सिस्टम को पैदा करने की
जरुरत ही महसूस नही हुई
क्यूंकि लोगो ने सिस्टम के बिना
जीना सीख लिया है!

“आलोक”

One thought on “सिस्टम …….!

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी अभिव्यक्ति !

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