कविता

धर्म

धर्म क्या है?
नया जीवन
मन का दर्पण
आत्मसमर्पण
या लक्ष्य कोई असाध्य सा,
धर्म क्या है?
कोई बिँदू
अथाह सिँधु
या लक्षण कोई बुरे को बाध्य सा।।
धर्म क्या है?
साधना है,
भावना है,
या नूतनता का साध्य सा,
धर्म क्या है?
रथ कोई,
पथ कोई,
या कल्पना का काव्य सा।।
धर्म क्या है?
सत्य है,
अमृत्य है,
या सनातन के साक्ष्य सा,
धर्म क्या है?
गर्व है,
सर्व है,
या कुछ नहीँ अप्राप्य सा।।
धर्म क्या है?
विचार है,
प्रचार है,
या सर्वज्ञ है सर्वव्याप्य सा,
धर्म क्या है?
शक्ति है,
भक्ति है,
या भगवान है सौभाग्य सा।।
वो सनातन,
सम्मान है,
भक्त है,
भगवान है,
निश्चित सदा जो कर्म है,
वही मेरा धर्म है…!!

{{सौरभ कुमार}}

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

One thought on “धर्म

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता.

Comments are closed.