कविता

एकाकी

 

घाटी के
मील के पत्थर पर
बैठा हूँ मैं एकाकी

लौट न आने वाला
सूना पथ
है मेरा साथी

उड़ कर मुझ तक
पहुँच रहे
सतरंगी पत्ते
लगते हैं मुझे
जैसे हो
वे प्रेम के पाती

लगता मानो कोइ
आ रहा है समीप
जब जब
वृक्षों से छनकर
सुनहरी किरणों की बौछारें
मुझ तक हैं आती

आकाश से
हो रही है बूंदा बाँदी
यहाँ कोई नहीं
सिवा खामोशी के
जितना रो लूँ
कौन
देखने वाला है
यहाँ
मेरी आँखो से
बहता पानीी

घाटी के
मील के पत्थर पर
बैठा हूँ मैं एकाकी

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

4 thoughts on “एकाकी

Comments are closed.