गंगा जल
मैने कहा तुम ही तो मेरी नयी ग़ज़ल हो
उसने कहा तुम मेरे प्यार में पागल हो
मैने कहा मैं ज़मीं हूँ और तुम नीला आसमाँ हो
उसने कहा तुम मेरे मन की आँखों के काजल हो
वियोग की लंबी तन्हाई मेरी हमसफ़र है
जो तुम्हे छूना चाहे तुम वो मेरा आँचल हो
भटकता फिर रहा हूँ तन्हा इस जहाँ में मैं
कभी भी आ जाए बरसने तुम ऐसे बादल हो
अचेतन के पन्नों में अंकित रह गया है कोई
अंत में जिसे पीना चाहूं तुम वो गंगा जल हो
किशोर कुमार खोरेंद्र
खोरेंदर भाई ग़ज़ल तो धमाकेदार लिखी है . मज़ा आ गिया .
वाह वाह ! बहुत खूब !!