कविता

न मैं रहता जड़ ..न तुम रहती चेतन …

तुम गूंजती

मुझमे बनकर धड़कन

तुम निहारती

मुझे बहते निर्झर सा

बन कर दर्पण

तुम्हारी मुस्कराहट –

मेरे अंतर्मन के घने सूने को

छूकर

धूप सी जाती पसर

तुम हँसती तो –

खिले खिले से लगते

चंहूँ ओर के कण कण

-तुम भोर की

मनमोहक सुन्दरता

बुहारती –

मेरे मन आँगन में

अतीत के बिखरे तम

के शुष्क भ्रमित पर्णों को

अपनी किरणों के हाथो

लिए शीतल पवन को संग संग

तुम विराट की असीम चेतना

की

अभिव्यक्ति सी –

मेरे ऊर में …

रुधिर सी बहती हो निरंतर

मुझे दुलराती

तुम ..

करुणा सी …

बदले में मै

प्रेम सा –

करता तुम्हारा मधूर स्मरण और चिंतन

अंतर मिट जाता तब

न मै रहता जड़

न …

तुम रहती चेतन

किशोर

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “न मैं रहता जड़ ..न तुम रहती चेतन …

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मज़ा आ गिया पड़ कर किशोर भाई .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता.

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