कविता

मत रोको उसे …….

मत रोको उसे …….

१-मत रोको उसे
उस आदमी को
जो दर्द के पहाड़ से
लावे की तरह उतर रहा है
उसके
ओंठ सील हुए हैं
हाथ कटे हुए हैं
पांवो मे बेड़ियाँ हैं
उसकी देह मे दुःख के कांटें उग आये हैं
सारे अँधेरे को एकाकी होकर पीते आये
उस रक्त-तप्त …
आदमी को -मत रोको

२-नदी के इस पार की
सारी पगडंडियों पर
बिछे हुवे
करोडो
प्यास से सूखे
भूख से पीले
लड़खड़ाते
पत्तो को
इसी आदमी का इन्तजार है
३-नदी से कह दो
कि
वह
उसके रास्ते से हट जाए
उसका
तपा हवा मन
फिर
कही पानी की तरह न बह जाये
उसे आने दो नदी के इस पार
सदीयों बीत गये
अब
उसकी आंच से सुलगने दो
जुटी हुई पत्तीयों को
और एक् बार
समूचा
जल जाने दो जंगल कोपत्थरों की हीरे -जडीत आँखों को
उसकी आँखों के तेज से टकरा कर
चूर -चूर हो जाने दो

मनुष्यता को पराजित करते आये
पत्थरों के आशीर्वाद को
धुंवा बनकर उड़ जाने दो

समूल ढहने दो बरगद को
सुंदर दिख रहे
कीमती
सुरक्षित
सागौन के वृक्षो को
मत रोको उसे
वह
स्वयम ही एक् सही रास्ता है

४-जलने दो
जंगल को
फिर आयेगा
मौसम
लिख जायेगा
नदी की रेत
पर खींची हुई
पानी की लकीरों में
नये अक्षर
नयी कविता
उसे मत रोको
जो
पहाड़ से
उतर रहा है

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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