लघुकथा

काश

काश तुममें
काश्मीर की
चाहत ना होती
माँ गोद छिना
बच्चों का घर जख्मी
भू अंक मिला
तुमने क्या पाया
जेहाद व जे हाल
तमन्ना तुम्हारी थी
=
मैं बीएड में पढ़ रही थी एक कहने सुनने की कक्षा चल रही थी। …. पूरे कक्षा में हम तीन चार थे जो थोड़े ज्यादा ही गर्म मिजाज के थे। …। जिसमें एक लड़का मुसलमान था। …. उसने सुनाया ……
पत्थर पूजन हरि मिले
तो मैं पूजूं पहाड़
या भली चक्की
पीस खाए संसार
= मैं उबल पड़ी और थोड़े जोर से ही चिल्ला बैठी …..
कंकड़ पत्थर चुन के
मुल्ला दिए मस्जिद बना
ता पर चढ़ के मौला बांग दे
बहरा हुआ क्या खुदा
= बहुत वर्षों तक लगता रहा कि बचकानी हरकत थी …..
सबकी घूरती निगाह हमेशा पीछा करती रही ….
आज तो सच में बहरा लगा ख़ुदा
—–

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

6 thoughts on “काश

  • विजय कुमार सिंघल

    क्या करारा व्यंग्य है ! वाह !!

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      धन्यवाद आपका

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      समय आ गया है एक जुट होने का …. अब नही हुए तो पछताने का भी मौका नही मिलेगा ….

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विभा जी , यह विअंग बिलकुल करारा है , और सही है . जो पाकिस्तान ने बोतल से भूत निकाल कर भारत की ओर छोड़ रखा था वोह खुद को ही मिटाने लगा है . अब यह भूत अपने आका की सुनता नहीं है .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभार आपका …. आपने बिलकुल सही कहते हैं

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