कविता

कैसे हैं तुम्हारे हाल?

भई और सुनाओ सुन्दर लाल कैसे हैं तुम्हारे हाल?
मैं क्या बताऊँ भाई मेरे बस हाल तो हैं बेहाल!

हमें तोड़ रही गरीबी है, कुछ लोग हैं मालामाल
मैं क्या बताऊँ भाई मेरे बस हाल तो हैं बेहाल!

आ रही योजना नई नई पर क्या बदला है अब तक
पहले थे जैसे आज भी वैसे ही हैं फटेहाल

हमें दिखा के सपना रोटी का, अपनी ही सेंक रहे हैं
हर ओर बेमानी, धोखाधड़ी का हैं फैला जंजाल

हमें तोड़ रही गरीबी है, कुछ लोग हैं मालामाल
मैं क्या बताऊँ भाई मेरे बस हाल तो हैं बेहाल!

एक-एक कर कोड़ी थी जोड़ी, अपने खाने-पीने को
सब लूट लिया जमाखोरों ने, है कर दिया कंगाल

कुछ खा-खा करके फूट रहे, गुब्बारे बन गए हैं
कुछ सूख रहे बिन रोटी को, बनकर रह गए कंकाल

हमें तोड़ रही गरीबी है, कुछ लोग हैं मालामाल
मैं क्या बताऊँ भाई मेरे बस हाल तो हैं बेहाल!

इक तरफ हो रहे सम्मलेन प्रवासी भारतीयों के
इक तरफ छिप रही सच्चाई, अब कौन सी है ये चाल

गिर-गिर के संभाल भीं पाये हम आज तलक भी खुद को
फिर भी कुछ लोग हमें कहते, अरे! खुद को तू संभाल

हमें तोड़ रही गरीबी है, कुछ लोग हैं मालामाल
मैं क्या बताऊँ भाई मेरे बस हाल तो हैं बेहाल!

रो-रो कर आँखें सूख गई, और पसली आ गईं बाहर
क्या कहें के कैसे जी रहे, अब हो गए हैं बदहाल

बस हो गए हैं बदहाल!!!

क्या अब भी जानना चाहो हो कैसे हैं हमारे हाल!!!
कैसे हैं हमारे हाल!!!
-अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार

अश्वनी कुमार, एक युवा लेखक हैं, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत मासिक पत्रिका साधना पथ से की, इसी के साथ आपने दिल्ली के क्राइम ओब्सेर्वर नामक पाक्षिक समाचार पत्र में सहायक सम्पादक के तौर पर कुछ समय के लिए कार्य भी किया. लेखन के क्षेत्र में एक आयाम हासिल करने के इच्छुक हैं और अपनी लेखनी से समाज को बदलता देखने की चाह आँखों में लिए विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सक्रीय रूप से लेखन कर रहे हैं, इसी के साथ एक निजी फ़र्म से कंटेंट राइटर के रूप में कार्य भी कर रहे है. राजनीति और क्राइम से जुडी घटनाओं पर लिखना बेहद पसंद करते हैं. कवितायें और ग़ज़लों का जितना रूचि से अध्ययन करते हैं उतना ही रुचि से लिखते भी हैं, आपकी रचना कई बड़े हिंदी पोर्टलों पर प्रकाशित भी हो चुकी हैं. अपनी ग़ज़लों और कविताओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक ब्लॉग भी लिख रहे हैं. जरूर देखें :- samay-antraal.blogspot.com

2 thoughts on “कैसे हैं तुम्हारे हाल?

  • विजय कुमार सिंघल

    कविता कुछ और सुधारी जा सकती थी. वैसे ठीक है.

  • देश की अर्थ्विवस्था का भंडा फोड़ती है यह कविता.

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