कविता

साक्षी है इतिहास

 

साक्षी है इतिहास
पाकर मां का आशीर्वाद
अवतरित हुए
धरती पर भगवान्
उस नारी का कर अपमान
किस तरह से
सुसंस्कृत हो पायेगा इंसान 

अब तक चुप रहकर
देते आये सुधरने का
असंयम को अवसर
जागरूक हो चुकी है महिलायें
अब न सहेंगी वे
सदियों से होते आये
इस तरह के अपराध

तजना होगा आज के परिवेश में
छेड़ छाड़ ,छींटाकसी ,यौन उत्पीडन
दहेज प्रथा ,भ्रूण हत्या और बलात्कार
करना होगा नारी प्रताड़ना से जुडी
हर घटना पर दंड का
सख्त से सख्त प्रावधान

नारी देवी का है रूप
ममता की है मूरत
श्रद्धा की है वह पात्र
नारी के कारण ही पुरुष का
अस्तित्व है विद्यमान

सहनशीलता का यह अर्थ नहीं की
भविष्य में भी हो
उन पर होता रहे घोर अत्याचार
पुरुषों पहचानों भारत माता को
अब न हो
इस पावन धरती पर
ऐसे निंदनीय हालात

निस्वार्थ प्रेम की बाती सी जो
प्रज्वलित रहती है आजीवन 
उसी के कारण सूर्य में है  प्रकाश 
पाकर मां का आशीर्वाद
अवतरित हुए
धरती पर भगवान्
साक्षी है इतिहास

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

2 thoughts on “साक्षी है इतिहास

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी विचारशील कविता !

  • बेछक औरत अब जागरूप हो चुक्की है लेकिन औरत पर अतिअचार बहुत बड़ रहे हैं इस लिए ज़िआदा से ज़िआदा महला संगठन का इन्कलाब आना चाहिए ताकि बुरे लोगों के नकेल पाई जा सके .

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