क्षणिकाएँ
नन्ही कली का ह्रदय
बींधते रहे
अपना सुख पाया
चुभा न कांटा
दिल में कोई ..!!
कि होती जो वो
तुम्हारे बाग़ की
कली तो बींध
पाते तुम उसे
इस तरह……??
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फूलों की आस में
काँटे पनप गए
बचाया
जिन सपनों को
गैरों से
वो अपने हड़प गए
है फिर भी
गम नहीं हमे
किस्मत से
जिन्हें रखा आँखों में
वही
दामन भिंगों गए ।