कविता

केवल तुम और मैं

 

घर में झरोखे ,खिड़कियां

निगरानी करते होंगें
दरवाजे रोकते होंगें
एक आदमकद  आईने में
उभर आया साया
कफ़स में कैद पक्षी सा
सहमता होगा
शहर के चौराहे की घडी
कहती होगी -दुनियां की भीड़ में खो न जाना
एक दिन इस जहाँ से भी तुम्हें होगा लौटना
सड़कें  कहती होंगी – चलों  कहीं दूर भाग जाएँ
बरगद के तले  स्थित मंदिर  के भीतर
प्रज्वलित अखंड ज्योत से
लगता होगा मानों सदियों पुराना  नाता है
गांव के तालाब में खिले कमल
मन्त्र मुग्ध कर लेते होंगें
कुंए  के भीतर डर  छुपा हुआ सा
लगता होगा
खेतों के मेढ़ संभल कर
चलना सिखलाते होंगें
पगडंडियाँ भी
गोधूली  बेला   में
पशुओं के गले में बंधी घंटियों के स्वरों  के संग
लौट आती होंगी
पीपल की जड़ों के आसपास बना चबूतरा
अपने ही फैसलों के बारे में सोचता रहता होगा
सही था निर्णय या गलत
शरीर में उजले  कपडे होंगें
पांव में पुरानी चप्पलें होंगी
हाथ में एक रुमाल होगा
शरीर तो वस्त्र की तरह है
बदलता रहता है
ऐसा लगता होगा
मन में एक ही समय पर
किसी के लिए गुस्सा ,किसी के लिए प्यार होगा
मन में नफरत और स्नेह के मध्य
खुद के लिए
स्वतंत्र एक संकरी गली होगी
रूह में करुणा होगी
रूह में दिव्य प्रकाश होगा
वैराग्य होगा
जन्म -मृत्यु से परे  शाश्वत चेतना का
चिर आभास होगा
घर ,शहर ,गांव ,शरीर ,मन ,रूह ,से भी
अलग
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे  मैं के
निस्तब्ध  मौन के  वीरान जंगल में
मैं तुमसे मिलने आ रहा हूँ
जहाँ पर केवल तुम और मैं होंगे
किशोर कुमार खोरेन्द्र 

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.