उपन्यास : देवल देवी (कड़ी 25)
22. गंधर्व परिणय
कामज्वर के बाद जब देवलदेवी की चेतना लौटी तब वह लाज से सिकुड़-सिकुड़ गई। अपने प्रिये के छूने भर से वह हाय-हाय करके घोंघे के तरह अपनी देह समेट लेती। उसके चेहरे पर अब भी प्रथम यौन संसर्ग की ऊष्मा से आई स्वेद के बूँदें थी जो उनके स्वर्णिम मुखमंडल पर चाँदी के कणों की तरह दिखाई देती थी।
तनिक घड़ी बीते राजकुमारी लजाते-सकुचाते बोली ”स्वामी, पे्रम और भावना के ज्वरावेग में हमने अपना सर्वस्व आपके चरणों में अर्पित कर दिया हे। अब आपके चरणों में पड़ी इस दासी की लाज, मान-मर्यादा आपके ही हाथों में है।“
युवराज, देवलदेवी को अंक में समेटते बोले, ”प्रिये कहो अब मैं तुम्हारा और क्या शुभ करूँ। मैं धर्मानुसार हर रीति का निर्वाह करूँगा। वचन देता हूँ।“
राजकुमारी, युवराज के सीने के रोम स्पर्श करते हुए बोली, ”क्या दासी को स्वामी अद्र्धांगिनी का सम्मान न देंगे।“
युवराज हँसते-विहँसते बोले, ”देवी की आज्ञा शिरोधार्य। आकाश में स्थित देवता साक्षी रहे, हम देवी से अभी परिणय करना चाहते हैं। क्या देवी की अनुमति है।“
युवराज की रस भरी बातें सुन देवलदेवी ने मादक गुलाबी अधरों से उनके कोमल सीने को स्पर्श कर लिया।
कंदरा में विवाह की तैयारी होने लगी। पर विवाह कौन करावे? देवलदेवी कुछ सखियों और दासियों के अतिरिक्त वहाँ कौन था। नाउन ने कहा किसी की आवश्यकता नहीं। गंधर्व विवाह की यही रीति है। नल-दमयंती का भी परिणय ऐसे ही हुआ था।
शंकरदेव ने देवलदेवी का हाथ पकड़ लिया और देवलदेवी ने शंकरदेव का। शंकरदेव ने उसे अपनी बायीं ओर बैठा लिया। नाउन ने गाँठ-जोड़ की। सखी-दासी मंगल-गान करने लगी। और यूँ दोनों का विवाह संपन्न हो गया। उस रात्रि उन्होंने उसी कंदरारूपी महल में विश्राम किया। दासियों ने सुहाग सेज सजाई, देवलदेवी को सुगंधित मसाले और उबटन लगाकर स्नान कराया। सोलह श्रृंगार किए और फिर राजकुमारी का हाथ पकड़ दासियाँ उसे शंकरदेव के पास शयनगार में ले चली। देवलदेवी के रूप वश हो शंकरदेव ने मुग्ध-मन हो उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। दासियाँ वहाँ से चली गईं। देवलदेवी के शरीर में हरहराहट उठी। एकांत पाते ही वह लजाती, थर-थर काँपती युवराज की छाती से चिपक गई।
थोड़ी देर में ही राजकुमारी, पति से हँस-हँसकर बातें करने लगी। और उनका पति उनके रूप के सुखसागर में डूबने-उतरने लगे। शंकरदेव ने अपनी पत्नी को अंक में भर प्रत्येक अंग का चुंबन किया, कुचों का मर्दन किया फिर उनके अंक में भरे शय्या पर लेट गए। राजकुमारी ने भी लजाते-सकुचाते पति को चुंबन किया। फिर यह नवविवाहित युगल, दीपक के प्रकाश में मिलन के सागर में डूबने-उतराने लगे।