कहानी

रिश्ता प्यार का

श्रद्धा देवी और दीनानाथ के दो बेटे थे. उनकी शादी हो चुकी थी. बड़े बेटे को औलाद का सुख मिल गया था, मगर छोटे बेटे अरुण का आंगन अभी सूना था | अरुण और दीपिका दोनों की जोड़ी को जैसे भगवान ने अपने हाथों से बना कर भेजा था. दोनों एक दूसरे पर जान देते थे |शादी के बाद बच्चा न होने के कारण कैसे-कैसे दुखों और तनाव से गुज़री थी उनकी ज़िंदगी. अरुण ने हर कदम पर अपनी पत्नी दीपिका का साथ दिया | घर में जेठानी किरण के दो बच्चे थे स्वीटी और चीनू, बेटी पांच वर्ष की बेटा दो वर्ष का , बच्चे उसे छोटी माँ कह कर पुकारते, तो वो ख़ुशी से झूम उठती. दीपिका उन पर अपना खूब प्यार लुटाती,उनके लिए कपडे सीती, तरह-तरह के स्वेटर बुनती, खिलौने लाती, माँ की तरह उनका बहुत ख्याल रखती । किरण की सहायता भी हो जाती और दीपिका को भी बच्चो के साथ वकत बिता कर दिली सुकून मिलता ।

शादी को कई साल बीत गए, पर दीपिका की झोली सूनी ही थी । इस बीच दीपिका पर दो बार गर्भपात होने का कहर भी टूट चुका था. माँ बनने की ख़ुशी को मातम में बदलते हुए देखने का दुःख झेला था उसने. उन दोनों के लिए ये वक्त दुखदाई था. अरुण के प्यार ने ही दीपिका को इस दुःख से बाहर निकाला था । श्रद्धा देवी और दीनानाथ चाहते थे की उनके छोटे बेटे के घर भी कुलदीपक आए. दीपिका को न जाने कितने मंदिरों में ले गए, मन्नतें मांगीं, दुनिया का कोई डॉक्टर नहीं छोड़ा , दीपिका भी भगवान को पूजती, व्रत रखती दिन-रात अपनी सूनी गोद को भरने की प्रार्थना करती रहती, पर उसकी आस पूरी न हुई ।

अब तो पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने भी बातें बनानी शुरू कर दी थीं | कुछ लोगों ने तो सास-ससुर को बेटे की दूसरी शादी के लिए भड़काना भी शुरू कर दिया था । उस दिन अपनी बदकिस्मती पर बहुत रोई थी दीपिका, जब उस तक यह बात पहुंची थी| अरुण दीपिका की ऐसी हालत देख न पाया था | उसने माता-पिता को साफ़-साफ़ कह दिया कि, ”दीपिका मेरी पत्नी है, मैं इसे नहीं छोड़ सकता. बच्चे की चाह में मैं दूसरी शादी करके दीपिका के साथ हरगिज़ अन्याय नहीं करूंगा । अगर हमें बच्चा चाहिए होगा, तो हम अनाथ आश्रम से किसी बच्चे को गोद ले सकते है ” अरुण के माता पिता को ये नामंज़ूर था ।अरुण से ये बात सुन कर सिर धुनते हुए माँ ने कहा, “बस, यही दिन देखना बाकी रह गया था, अब जग-हंसाई करवाएगा हमारी, ऐसा करोगे तो लोग क्या कहेंगे, फिर भी अपना खून तो अपना होता है ।“ अरुण ने माँ को समझाते हुए कहा “ किन लोगों की बात कर रही हो माँ, मैं ऐसे लोगों की परवाह क्यों करूं, जो दूसरो की ज़िंदगी में दखल-अन्दाजी करते हैं, दूसरो के दुःख पे हंसते हैं. मेरी ख़ुशी दीपिका से है, लोगों से नहीं. क्या हमें अपनी ज़िंदगी लोगों के हिसाब से चलानी होगी, हमें जिंदगी अपनी इच्छा से जीने का हक़ नहीं है क्या ?” इन सब बातों का जवाब नहीं था माँ के पास पर, वो फिर भी उसकी दूसरी शादी करने की ज़िद्द पर अड़ी हुई थी. दीपिका को देखना उसे गवारा नहीं था वो चाहती थी किसी तरह दीपिका घर से चली जाये. वह हर वकत दीपिका से उखड़ी-उखड़ी रहती, बात-बात पर ताने देती , दीपिका सारा दिन उन सब की खिदमत में लगी रहती , उनकी सेवा करती रहती सासू माँ के व्यव्हार से दीपिका का दिल बहुत दुखी होता, पर वो पलट कर कभी जवाब नहीं देती, कुछ न कहती बस इस दर्द को आंसुओ के ज़रिये बहाती रहती |

एक दिन दीपिका ने दिल पर पत्थर रख कर, अरुण को दूसरी शादी के लिए कह डाला “ देखिये, मैं जानती हूं, आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं, अरुण मैं बहुत खुशकिस्मत हूं, जो मुझे आप जैसा जीवन साथी मिला है , मेरी ज़िंदगी भी आप से शुरू होकर आप ही पर खत्म होती है. आप की ख़ुशी के लिए तो मैं अपनी जान भी कुर्बान कर सकती हूं | बस आप को खुशियां देना चाहती हूं, आप को बच्चे का सुख देना चाहती हूं, पर लगता है भगवान ने मेरे हाथों में माँ बनने की रेखा ही नहीं बनाई । पर आप चाहे तो पिता बनने का सुख हांसिल कर सकते हैं. किसी और से शादी करलो अरुण.” यह कहते हुए दीपिका रोने लगी. अरुण की आँखों में भी आंसू आ गए. दीपिका के चेहरे को दोनों हाथो में ले कर बोला ” खुद ही प्यार की बात करती हो और प्यार करने वाले के दिल को समझ नहीं पाई, दीपिका तुम मुझ पर जान न्योछावर करने की बात करती हो, पर ये सोचा है कि तेरे बगैर मैं इस जीवन का क्या करूंगा, प्यार तो मैंने भी किया है तुमसे ,किसी और को जीवन साथी बनाना मेरे लिए मुमकिन नहीं , अच्छा एक बात बताओ अगर मैं तुम्हरी जगह होता, कोई मुझमें कमी होती तो क्या तुम मुझे छोड़ जाती ? नहीं न तो बस फिर कभी ये बात फिर अपनी ज़ुबान पर मत लाना । मैं जानता हूं, तू एक बच्चे के लिए कितना तड़पती है! मैं हर दिन तेरी आँखों में ये दर्द देखता हूं दीपिका , हम एक बच्चे को गोद ले सकते हैं, एक-न-एक दिन माँ-बाबू जी ज़रूर मान जायेंगे । अरुण की इन बातों ने दीपिका के दिल में आशा की किरण जला दी और वो दिल में सपने सजा के बस उस दिन का इन्तज़ार करने लगी, जब एक नन्हा-सा फरिश्ता उसकी गोद में खेलेगा उसे माँ कह कर पुकारेगा |

दीपिका अपने सूनेपन को भरने के लिए मुहल्ले के बच्चों को ट्यूशन देने लगी । सारा दिन बच्चों के संग खुश रहती, साथ में किरण के दोनों बच्चों की देखभाल करती | बच्चे भी उसे बहुत प्यार करते, दीपिका के संग खुश रहते |जाने क्यों किरण को ये सब पसंद नहीं था, बच्चों का दीपिका को छोटी माँ पुकारना, हर वकत उसके आस पास मंडराते रहना उसे खलता था| पता नहीं उसके दिमाग में किसने ज़हर घोल दिया था, कि एक दिन बच्चे दीपिका के लिए अपने माँ बाप को छोड़ जाएंगे और बस दीपिका को ही माँ मानेंगे | वो बच्चों को उसके पास जाने से रोकने लगी बच्चो और दीपिका के लिए ये दुरी असहनीय थी पर किरण की नफरत उनके प्यार के बंधन को तोड़ नहीं पाई बच्चे माँ से नजर बच्चा कर अपनी छोटी माँ से मिल लिया करते | किरण बात-बात पर दीपिका से झगड़ती और अपना परिवार अलग बसाने की धमकी देती | किरण तो वैसे भी सिर्फ खुद को ही घर की बहू मानती थी, घर को दो-दो चिराग जो दिए थे उसने, इस लिए उसका पलड़ा भारी था| वैसे भी घर में हर दिन त्योहार पर किरण की ज़्यादा पूछ होती, दीपिका को हर कार्य में नज़रअंदाज़ किया जाता । किरण अपनी मनमानी करने लगी थी हर वक्त वरुण को, अरुण और दीपिका के खिलाफ़ भड़काती रहती, घर में क्लेश इतना बढ़ा, कि एक दिन वरुण ने दीपिका और अरुण को बहुत बुरा भला कहा. दोनों भाइयोँ में जम कर लड़ाई हुई | श्रद्धा देवी ने भी दीपिका को सुना दिया, कि तू तो हमें घर का चिराग न दे सकी जिस ने दिए है, क्या उसे भी घर से निकाल दें, इससे अच्छा है कि तुम दोनों ही अलग हो जाओ ।

हर दिन के क्लेश को दूर करने के लिए अरुण ने एक मकान किराये पर लिया और दोनों वहां रहने चले गए. वहां सेटल होने में कुछ वक्त लगा, पर इस बीच वो माता-पिता से मिलने ज़रूर जाते | दोनों को घर में देख बच्चे भी बहुत खुश होते| अब किरण ने सास ससुर से भी क्लेश शुरू कर दिया, अब वह अलग गृहस्थी बसाना चाहती थी | बहू-तो-बहू, उनके बेटे वरुण ने भी उन के साथ बुरा व्यव्हार शुरू कर दिया था| श्रद्धा देवी ने पहले ही अपने ज़ेवर अपने पोते-पोती के नाम कर दिए थे, दीनानाथ ने जमापूंजी भी बच्चों की परवरिश और पढ़ाई के लिए लगा दी. अब उनके पास यह घर ही बचा था. वरुण और किरण दोनों उसे हथियाने की फ़िराक में थे. अपने ही बेटे के हाथों ऐसा धोखा और बेरुखी का असर श्रद्धा देवी की मानसिक स्थिति पर इतना पड़ा, कि इस सदमे से वे बीमार रहने लगीं। दोनों पति-पत्नी की हालत दयनीय हो गई थी. किरण सास-ससुर दोनों की कोई देखभाल न करती, श्रद्धा देवी दीपिका पर किये बुरे व्यव्हार को याद करके पछताती । एक दिन बच्चो ने रोते हुए दीपिका को दादा दादी पर हो रहे अत्याचार के बारे में बताया, अरुण और दीपिका अपने माता पिता की ये दशा देख न पाए | उनकी किरण और वरुण से इस बारे में काफी बहस हुई पर कोई नतीजा न निकलने पर वो अपने माता पिता को अपने साथ ले गए |

दीपिका उन दोनों की जी-जान से सेवा करने लगी, एक दिन दीपिका को इस तरह सेवा करते देख श्रद्धा देवी की आँखों से आंसू बहने लगे दीपिका को गले से लगा कर बोली ” मुझे माफ़ करदे बेटी, लोगों की बातों में आकर मैंने तुझे बहुत दुःख दिए, तुझे न जाने क्या-क्या कहती रही! तेरी तकलीफ को कभी नहीं समझी, पर तू फिर भी मुझे सम्मान दे रही है, मेरी सेवा कर रही है | दीपिका ने श्रद्धा देवी की आँखों से आंसू पोछे और बोली, ”माँ आप की सेवा करना तो मेरा फ़र्ज़ है आपने मुझे गले लगा लिया, आपका प्यार पाकर मुझे सब कुछ मिल गया । अरुण और दीपिका की सेवा और प्यार ने श्रद्धा देवी को एक दम स्वस्थ कर दिया । श्रद्धा देवी अब समझ गयी थी, कि अपनों की ख़ुशी से बढ़कर और कुछ नहीं होता. अरुण और दीपिका दोनों को पास बिठा कर बोली ” अपनी इच्छा को पूरा करने की ज़िद्द में मैंने तुम दोनों को बहुत दुःख दिया । मैं समझती थी, कि खून के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता पर जो वर्ताव मेरे अपने बेटे वरुण ने मेरे साथ किया उसके बाद मेरी ये सोच बदल गई है, कि खून के रिश्ते से बड़ा रिश्ता प्यार का रिश्ता होता है | दीपिका ने मुझे बेटी से बढ़कर प्यार दिया अब मेरा भी फ़र्ज़ बनता है की मैँ अपनी बेटी को खुशियां दूं. अब और देर न करो, जाओ अपनी खुशियां घर ले आओ |

माँ और पिता जी से आज्ञा मिलने पर दोनों अनाथ आश्रम गए और वहां से एक नन्हा फ़रिश्ता गोद ले आये उसका नाम कृष्णा रखा गया. ये दीपिका का कृष्णा ही तो था, जिसने यशोदा माँ की दुनिया को खुशियों से भर दिया. उसके आने की ख़ुशी में बहुत बड़ी पार्टी दी गयी. सभी रिश्तेदार-दोस्त उनकी ख़ुशी में शामिल हुए. सभी की ओर से उन्हें बधाइया मिलीं | अरुण और दीपिका की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था । दीपिका नन्हे-से फ़रिश्ते को सीने से लगा कर अपनी सारी ममता उस पर न्योछावर कर रही थी| इस नन्हे फ़रिश्ते के आने से उसकी अँधेरी दुनिया में उजाला आ गया था,वर्षों से सूनी गोद में किलकारियाँ गूंजने लगीं. श्रद्धा देवी और दीनानाथ भी अपने बच्चों की ख़ुशी और अपने फैसले पर बहुत खुश थे | सब से बड़ी ख़ुशी इस बात की थी, कि उनके इस फैसले से ये प्यार की पक्की डोर और भी मज़बूत हो गई थी | प्यार की यह पक्की डोर भी बाकी सबके अलावा वरुण और किरण को तो नहीं ही बांध सकी थी, लेकिन चाचा-चाची के निमंत्रण की डोर से बंधे हुए दीपिका के चहेते बलराम और राधिका यानी चीनू और स्वीटी, नन्हे कृष्णा के दर्शन के आकर्षण से, खिंचे हुए चले आए थे|

2 thoughts on “रिश्ता प्यार का

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कहानी है , इस से सीख मिलती है जो लोग अपनी उलाद ना होने के कारण बच्चा गोद लेना बुरा समझते हैं, बच्चा गोद लेने से जिंदगी सुहानी हो जाती है , साथ ही बच्चे को माँ बाप मिल जाते हैं.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कहानी, बहिन जी.

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