सामाजिक

माँ

माँ से बढकर कुछ नहीं,क्या पैसा क्या नाम।
चरण छुअे से हो जाये, तीरथ चारों धाम।

माँ शब्द बड़ा ही पावन और मनभावन है ये गंगा से निर्मल ,आकाश से भी विस्तृत तथा सागर से भी गहरा है।हमारी भारतीय संस्कृति में। माँ को नारी रूप में देवी स्वरूपा माना गया है।

माँ के हृदय में ममता का सागर उमड़ता रहता है स्नेह और प्रेम की वर्षा होती रहती है ।माँ के साथ हमारी बाल्यकाल की मधुर यादें जुड़ी होती है बच्चा कितना भी बड़ा क्यों न हों जाए,माँ के समक्ष बच्चा शिशु ही। बना रहता है और माँ सदैव उसके सुख शांति के लिए व्रत रखती है । माँ अपने सन्तानों के लिए तो अपने आचल में दुखो का सागर समेट लेना चाहती है इसलिए कहा गया है —
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।

माँ अपने बच्चों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है, अपने बच्चों के लिए कष्ट उठाकर भी खुश रहती है। माँ विश्व की सर्वश्रेष्ठ निधि है। बच्चों का जितना लगाव अपनी माँ से होता है उतना किसी और से नहीं। माँ का स्नेह,प्यार बालक को महान बना देता है माँ बच्चों की प्रथम शिक्षिका है तथा परिवार प्रथम पाठ साला है जहां बच्चे नागरिकता का पाठ सीखते हैं।वह माँ सचमुच में महान है जो कष्ट सहकर भी अपने बच्चों के चरित्र निर्माण में भी योगदान देती है।

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

3 thoughts on “माँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख.

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      dhanybad ji

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