कविता

सर्कस

जब-जब सर्कसआया।
मुझको कभी नहीं भाया।
जानवरों पर अत्याचार।
करतें हैं उन पर सरदार।
इतना उन्हें सताते हैं।
कितनी बार नचाते हैं।
आधे भुखे रहते हैं
बड़े कष्ट वे सहते हैं।
मानव उन्हें सताते हैं
खुद को श्रेष्ठ बताते हैं।
——-निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

3 thoughts on “सर्कस

Comments are closed.