बाल कविता

सपनों का संसार

कितना प्यारा होता हैसपनों का संसार
होते हैं यहाँ पर क़ई असंभव चमत्कार

आकाश में हम उड़ते हैं दरिया में गोते लगाते हैं
फूलों के घर बनाके मोतियों से सजाते हैं

सुरज-चाँद से मिलके हम खेलते हैं आँख मिचोली
तारों को सजाके हम बनाते हैं रंगोली

सपनों की इस दुनिया में होती है अपनी राज
राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री मिलाते हैं हमसे हाथ

लड्डू पेड़े रसगुल्ले हम तोड़ते हैं पेड़ से
टॉफी बिस्किट नमकिन हम लाते हैं खेत से

शेर चीता हमारे घर की करते हैं रखवाली
बंदर भालू के साथ वे खाते हैं एक ही थाली

काश ! ये संसार कहीं सचमुच में जब होता
कल्पना करो तब हमें कितना मजा आता

~~~दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

2 thoughts on “सपनों का संसार

  • दीपिका कुमारी दीप्ति

    बहुत बहुत धन्यवाद सर मेरे कविता को पढ़कर अपनी राय देने के लिए !

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