कविता

कविता : कहाँ हो तुम !

कहाँ हो तुम
तन्हा दिल
ढूंढे तुमको
बेकली
बेकरारी
तन्हाई
आस
उम्मीद
बढ़ा के
छोड़ गए
तन्हा
जला के
प्रेम का
दीपक
लौट आओ
की तुम बिन
जिंदगी
अधूरी है ।

धर्म पाण्डेय

One thought on “कविता : कहाँ हो तुम !

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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