हुस्न और इश्क़
हुस्न और इश्क़ की जोड़ी सदा सलामत रहे
दोनों एक दूसरे की करते सदा इबादत रहे
ये जिस्म तो सिर्फ रूह का खूबसूरत लिबास है
हम दोनों के मन का पाक रिश्ता ता क़यामत रहे
बहुत पास आकर भी मलिन हुआ नहीं हमारा मन
दोनों के बीच कभी न कोई शिकवा न शिकायत रहे
प्रेम की पराकाष्ठा को हमारे द्वारा छू लिया जाए
हृदय की पवित्र भावनाओं में ऐसी ऊँची चाहत रहे
मैं केवल तुम्हारे बाह्य सौंदर्य का उपासक नहीं हूँ
तेरे हर रूप के प्रति मेरे जोशे जुनूँ में शबाहत रहे
किशोर कुमार खोरेन्द्र
(शबाहत -एक रूपता)
अच्छी ग़ज़ल !