कविता

काश! मैं ताड़ होती

काश! मैं ताड़ होती

जब भी होता आंधी  का सामना

काश ताड़ के पत्तों की तरह

मैं भी कट  जाती कई भागों में,

फिर जीवन के थपेड़ों के वेग

मुझे भी नहीं गिरा पाते ।

जरा सा झंझोरकर बस

निकल जाते मेरे बीच से,

मैं भी निर्भीक हो

खड़ी  होती अटल,

निर्मूल ना होती

जड़ी रहती जड़ों से ।

या फिर होती

बांस के पत्तों सी,

आंधी जिधर मोड़ती

मुड़  जाती मैं भी ,

थपेड़ों के चंवर में

डोलती तो जरूर

पर उखड़ती नहीं

अपने वजूद से ।

पर मनसा वचसा

हिना की पत्ती,

पिसती जाती,

अपने खून के रंग में

रंगती जाती,

खुश्बू में

डुबोती जाती

अस्तित्व मगर,

निर्मूल औ अचेत हो ।

स्वाति कुमारी

नाम - स्वाति पति- श्री राज कुमार जन्मतिथि- २२ अप्रैल जन्मस्थान -सिवान (बिहार) शिक्षा -ऍम.बी.ए व्यवसाय- हाउस वाइफ प्रकाशन सृजक (त्रैमासिक पत्रिका- प्रबन्ध संपादन), टूटते सितारों की उड़ान (साँझा कविता संग्रह) विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन ब्लॉग http://swativallabharaj.blogspot.in/ ​http://swati-vallabha-raj.blogspot.in/ छोटे शहर से हूँ और बहुत सी बातों को करीब से देखा और महसूस किया है । लिखना बचपन से हीं सुकून देता रहा है। फिर जीवन के भाग दौड़ में इसकी रफ़्तार एकदम मंद हो गयी । अभी कुछ समय से फिर कोशिश जारी है । लेखनी में इतनी ताकत भरना चाहती हूँ कि समाज की गलत धारणाओं और कुरूतियों के खिलाफ ना सिर्फ लिख पाऊं बल्कि लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास करूँ ।

4 thoughts on “काश! मैं ताड़ होती

  • जवाहर लाल सिंह

    काश कि प्रकृति बेटियों को ऐसी ही बनाती जैसी आपकी कल्पना है!

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    लाजबाब लेखन बिटिया

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछे विचार हैं आप के ,कविता अच्छी लगी .

    • स्वाति कुमारी

      बहुत बहुत धन्यवाद

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