कविता

विश्वास ढूढता है…..

खुदगर्ज सी दुनियां मे, विश्वास ढूढता है

समझाकर हार गया ,नादांन मेरे दिल को इस झूठ की दुनियां में, क्यूं खास ढूढता हैं
खुदगर्ज सी दुनियां मे, विश्वास ढूढता है…

पत्थर दिल दुनियां के, पत्थर दिल लोगों में
पागल ये दिल मेरा, अहसास ढूंढता है….
खुदगर्ज सी दुनियां मे, विश्वास ढूढता है….

लालच की आंधी में ,स्वारथ के तूंफा में
इर्ष्या के आगन में रंग रास ढूढता है….
खुदगर्ज सी दुनियां मे, विश्वास ढूढता है….

दौलत की भूखी है, शोहरत की प्यासी है
छल कपट की दुनियां में,श्रीवास ढूढता है..
खुदगर्ज सी दुनियां मे, विश्वास ढूढता है….

घनघोर अंधेरों में, इन पाप के घेरों में
पाखंड के डेरों मे,कुछ आस ढूंढता है….
खुदगर्ज सी दुनियां मे, विश्वास ढूढता है….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.