कविता

तुम छोड़ चले

एक रिश्ते ने दिल तोड़ा तो जग को ही तुम छोड़ चले।

बूढ़ी आँखों के सपने क्यों एक पल में तुम तोड़ चले।

हाथों में जो बंधा प्रेम से बस रेशम का धागा समझा।
पहले से ही सोए थे तुम क्यों खुद को जागा समझा।

कायर थे तुम क्यों साहस का झूठा चोला ओढ़ चले।
खुद के लिए ही जिन्दा थे जो अपनों से मुँह मोड चले।

क्यों मान गए हारा खुद को,रब ने क्या है नीति लिखी।
जीवन शतरंज की विशात,किस बाजी पे जीत लिखी।

जो मिला नहीं, न तेरा था फिर करने किससे होड़ चले।
जाना था किस ओर मुसाफिर,किस ओर तुम दौड़ चले।

एक रिश्ते ने दिल तोड़ा तो जग को ही तुम छोड़ चले।
बूढ़ी आँखों के सपने क्यों एक पल में तुम तोड़ चले।

वैभव दुबे "विशेष"

मैं वैभव दुबे 'विशेष' कवितायेँ व कहानी लिखता हूँ मैं बी.एच.ई.एल. झाँसी में कार्यरत हूँ मैं झाँसी, बबीना में अनेक संगोष्ठी व सम्मेलन में अपना काव्य पाठ करता रहता हूँ।