कविता

बलात्कार

बलात्कार

नहीं दिखा तुम्हे मेरा दर्द,

मेरी पीड़ा और मेरा डर

मेरे घुटते शब्दों के साथ

मेरा मरता वजूद

करते गए तुम अनदेखा ।

दिखे तुम्हे सिर्फ मेरे दो उभार

जो  सींचते है सृष्टि का आधार

पर तुम्हारे लिए तो वो थे

गुलाब के फूल ,मखमल में लपेटे

रौंदते गए जिसे तुम ,

और दिखा तुम्हे

अपनी मर्दानगी साबित करने का द्वार

वो द्वार जो नयी संरचना को जन्म देती है

उसमे तुम रचते गए

कलंक, घृणा ,मद |

तिस पर भी जी नहीं भरा

तो नोच खसोट दिया मेरा जिस्म ,

रक्त रंजीत मेरा शरीर,आत्मा और अस्तित्व

पड़े रहे निढाल,

और अट्टहास करता शब्द ”बलात्कार ”

स्वाति कुमारी

नाम - स्वाति पति- श्री राज कुमार जन्मतिथि- २२ अप्रैल जन्मस्थान -सिवान (बिहार) शिक्षा -ऍम.बी.ए व्यवसाय- हाउस वाइफ प्रकाशन सृजक (त्रैमासिक पत्रिका- प्रबन्ध संपादन), टूटते सितारों की उड़ान (साँझा कविता संग्रह) विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन ब्लॉग http://swativallabharaj.blogspot.in/ ​http://swati-vallabha-raj.blogspot.in/ छोटे शहर से हूँ और बहुत सी बातों को करीब से देखा और महसूस किया है । लिखना बचपन से हीं सुकून देता रहा है। फिर जीवन के भाग दौड़ में इसकी रफ़्तार एकदम मंद हो गयी । अभी कुछ समय से फिर कोशिश जारी है । लेखनी में इतनी ताकत भरना चाहती हूँ कि समाज की गलत धारणाओं और कुरूतियों के खिलाफ ना सिर्फ लिख पाऊं बल्कि लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास करूँ ।

One thought on “बलात्कार

  • विजय कुमार सिंघल

    पीड़ित महिला के भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति !

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