कविता

कष्ट परों को सहने दो

स्वच्छंद उड़ो मुक्त गगन में
पूर्ण करो अभियान।
विश्वास हृदय में हो मगर
तनिक नहीं अभिमान।

दृष्टि लक्ष्य की अनन्य रहे
विचलित,व्यथित न हो पाये।
प्राप्त करो प्रथम परिणाम
धैर्य,हृदय न खो पाये।

अभिलाषाएं हों भले गगन में
पग धूल धूसरित रहने दो।
सामर्थ्य नाप लो उड़ान की
कष्ट परों को सहने दो।

निज नयन नीर के आगे
नतमस्तक न आस करो।
असफलताओं के क्रम से
न मन्दगति से प्रयास करो।

आलोचना के मुख शर्मसार हों
कुछ तो ऐसा प्रबंध करो।
आलौकिक यूँ तेज भरो
कि नेत्र भानु के बन्द करो।

वैभव दुबे "विशेष"

मैं वैभव दुबे 'विशेष' कवितायेँ व कहानी लिखता हूँ मैं बी.एच.ई.एल. झाँसी में कार्यरत हूँ मैं झाँसी, बबीना में अनेक संगोष्ठी व सम्मेलन में अपना काव्य पाठ करता रहता हूँ।

2 thoughts on “कष्ट परों को सहने दो

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन

    • वैभव दुबे "विशेष"

      हृदय से धन्यवाद आदरणीया

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