गीतिका/ग़ज़ल

गजल

 

फ़िलबदीह की ग़ज़ल के मिसरे
बहर??2122 12 12 22
काफ़िया ~~आ
रदीफ़ ~~नहीं कोई ।

जिंदगी से गिला नहीं कोई
आप जैसा मिला नहीं कोई

भेजता हूँ तुझे कई ख़त मैं
पास में है पता नहीं कोई ।

झाँकिये तो गरीब के घर में
भूख है, पर दगा नहीं कोई ।

जख्म बस बेहिसाब तेरे हैं
आप जैसा सगा नहीं कोई।

ठोकरें हैं मेरी लकीरों में
आप से है गिला नहीं कोई ।

आप के साथ ही बहारें थीं
आप जैसा मिला नहीं कोई।

आप से चोट जो न खाया हो
आप का है सगा नहीं कोई ।

—  धर्म पाण्डेय

One thought on “गजल

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर गज़ल
    उम्दा सोच

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