राजनीति

मुझे गांधी से नफरत क्यूँ है ??

सबका अपना अपना विचार होता है हर इंसान के बारे में मेरा भी है गांधी के बारे में तो बस मैं यहाँ अपने विचार लिख रहा हूँ आप क्या सोचते हैं वो आपकी सोच है मैं तो बस अपनी सोच लिख रहा हूँ..

सबसे पहले तो ये बताओ गांधी जी तो अहिंसावादी थे ना तो फिर उनका दिया हुआ नारा “करो या मरो” हिंसावादी क्यूँ है ??

अमृतसर के जलियांवाला बाग़ के गोली कांड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए| गांधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया|

भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदंड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गांधी की और देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गांधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस मांग को अस्वीकार कर दिया, और आश्चर्य की बात तो ये है कि आज भगत सिंह एवं उनके साथियों को आतंकवादी कहा जाता है|

6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने संबोधन में गांधी ने मुस्लीम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देनी की प्रेरणा दी.. मोहम्मद अली जिन्नाह आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गांधी ने खिलाफत आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की, तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहां के हिदुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दू मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया| गांधी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया|

1926 में आर्य समाज द्वारा चलाये गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की ह्त्या अब्दुल रसीद नामक एक मुस्लिम ने की, इसके प्रतिक्रया स्वरुप गांधी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को राष्ट्र विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया|

गांधी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरु गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा| गांधी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रयाश्चित करने का परामर्श दिया, वहीँ दूसरी ओर हैदराबाद के निजाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया|

और गांधी ही वो इंसान थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आजम की उपाधि दी|

कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मानित से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गांधी के जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया|
कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया लेकिन गांधी सीतारम्मया का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
लाहौर कांग्रेस में बल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव संपन्न हुआ लेकिन गांधी की जिद के कारण यह पद जवाहर लाल नेहरु को दिया गया|

14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था लेकिन गांधी ने वहां पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया, यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पे होगा|

मोहम्मद अली जिन्ना ने गांधी से विभाजन के समय हिंदू मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गांधी ने अस्वीकार कर दिया|

जवाहरलाल की अध्यक्षता में मंत्रीमंडल ने सोमनाथ मंदिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया लेकिन गांधी जो कि मंत्रीमंडल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मंदिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुननिर्माण कराने का दबाब डाला|

पाकिस्तान से आये विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गांधी ने उन उजड़े हिंदूओं को जिनमे वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया|

22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रूपए की राशि देने का परामर्श दिया था, केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया लेकिन गांधी ने उसी समय यह राशि तुरंत दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी|

गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया|
द्वितीया विश्व युद्ध में गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया, जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते थे|

क्या 5000 हिन्दू की जान से बढ कर थी मुसलमानों की 5 समय की नमाज?? विभाजन के बाद दिल्ली की जामा मस्जिद में पानी और ठण्ड से बचने के लिए लगभग 5000 हिन्दुओं ने जामा मस्जिद में पनाह ले रखी थी, मुसलमानों ने इसका विरोध किया पर हिन्दू को नमाज से ज्यादा प्यारी अपनी जान लगी इसलिए उन्होंने बाहर जाने से मना कर दिया, उस समय गांधी नाम का वो शैतान बैठ गए बरसते पानी में धरने पर, पुलिस ने मजबूर होकर उन हिन्दू को मार मार कर भगाया और वो हिंदू “गांधी मरता है तो मरने दो” के नारे लागते हुए वहां से भीगते हुए गए थे (रिपोर्ट- जस्टिस कपूर, सुप्रीम कोर्ट ‘फॉर गांधी बध क्यूँ)

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को २४ मार्च 1931 को फांसी लगाईं जानी थी, सुबह करीब 8 बजे| लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी दे दी गयी और शव रिश्तेदारों को ना देकर रातों रात ले जाकर व्यास नदी के किनारे जला दिए गए| असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों खासकर भगत सिंह हिन्दुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे, उनकी लोकप्रियता से राजनैतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी.. उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को भी मात देने लगी थी|

चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी – इरविन समझौता हुआ जिसमे ब्रिटिश सरकार सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने पर राजी हो गयी थी, सोचिये अगर गांधी ने दबाब बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्यूंकि जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें उन्हें जरूर राजनैतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती, लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्यूंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता..

— अंकुर गुप्ता

2 thoughts on “मुझे गांधी से नफरत क्यूँ है ??

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सच्चा लेखन

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख ! इस लेख की एक एक बात पूर्ण सत्य है। इसको पढकर गांधी भक्तों की आँखें खुल जानी चाहिए।

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