राजनीति

आईना बोलता है

नितीष जी ने महिलाओं से किया हुआ वादा तो निभाया पर पुरुष प्रकृति की बलि चढ़ा दी। ऐसा नहीं है कि नशाबंदी कोई गलत कदम है, पर यह प्रयोग, विवादास्पद सफलता के साथ पहले भी किया जा चुका है। गुजरात में नशाबंदी है तो क्या वहाँ शराब नहीं मिलती ? और क्या बिहार के लोग नशा छोड़ देंगे ? होगा यही कि अवैध शराब का कारोबार चल निकलेगा और पुलिस वालों की चाँदी हो जाएगी।

मात्र निषेध लगाने से मनुष्य प्रकृति से जुड़ी समस्याओं का निदान कभी सफल नहीं हुआ है। हमें पहले यह देखना होगा कि शराब का सेवन किया क्यों जाता है। शराब, जहाँ उच्च वर्ग में एक शौक है, पाश्चात्य सभ्यता से जुड़े होने की पहचान है, वहीं कई लोगों के लिये यथार्थ से मुँह मोड़ने का साधन है, जीवन की उन विषम परिस्थितियों से, जिनसे पार न मिल पा रहा हो, बचने का तरीका है। जीवन की जंग से निश्फल जूझते हुए सब आत्महत्या नहीं कर लेते, बहुत से लोग ऐसे त्रासदी का इलाज शराब से करने लगते हैं। जिन्दगी की जद्दोजहद को भूल कर दो पल चैन के पाना चाहते हैं। ऐसे शराब सेवियों पर निषेध नहीं लागू हो सकता। अगर उन्हें आसानी से बाजार से उपलब्ध नहीं होती तो वे घर पर भी बना सकते हैं। और यही होता भी है। जिनकी आदत बन चुकी हो उन्हें सुधारना आसान नहीं है।

इस निषेध से जहाँ अवैध शराब के कारोबार को बढ़ावा मिलेगा, वहीं शराब की तस्करी भी खूब होगी। और इस तस्करी से किन को फायदा होने वाला है, किसकी लालबत्ती गाड़ियाँ इस्तेमाल होंगी, यह बताने की ज़रूरत नहीं है। हाँ, अगर कुछ असर पड़ेगा तो गाहे-बगाहे शौक फरमाने वालों पर जो अवैध शराब के अड्डे जानते नहीं और बाजार में पाएँगे नहीं। राजस्व तो अब भी आएगा पर सरकारी खजाने में नहीं।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।