बाल कविता

चाँद का विवाह

चाँद से ब्याह रचाने को आया एक पैगाम,
खुशी से चाँद झूमने लगा पूरा हुआ अरमान।

शर्ट और पतलून पहनकर हो गया तैयार,
टाई लगाकर दूल्हे राजा चला उसके द्वार।

चाँद का रौशन चेहरा सबको आया बहुत पसंद,
शुभ मुहूर्त दिखाने वास्ते पंडित बुलाया तुरंत।

एक टीकाधारी पंडित आया बोला निकालकर पतरा,
अमावस्या शुभ मुहूर्त है आगे फिर है खतारा।

शादी का निमंत्रण चाँद देने गया घर-घर,
चारो ओर उसकी शादी का फैल गया खबर।

अमावस्या के दिन चाँद का चल दिया बारात,
हाथी-घोड़े, साज-बाज और ढोल-नगाड़े साथ।

बरातियों को देख सभी ने दूल्हे का लिया खबर,
पर दूल्हा ही गायब था कहीं नहीं आया नजर।

दूल्हा को नहीं पाकर सब हो गया हैरान,
अरे आज तो अमावस है चाँद का है विश्राम।

ये सुनकर सब लोग बहुत ही हो गये उदास,
चाँद का विवाह न हुआ लौट आयी बारात।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।