नया साल
ये अलसाई आँखों में सपने सजाकर,
नया साल आया, नया साल आया
कि माज़ी के हर दर्दो-ग़म को भुलाकर,
नया साल आया, नया साल आया
कि शबनम से धरती नहाई हुई है
उमंगों की ख़ुश्बू समाई हुई है
क्षितिज पर उषा-रश्मि-चादर बिछाकर,
नया साल आया, नया साल आया
ये झील और झरने, ये मौसम सुहाना
ये चिड़ियों की चहचह,ये बुलबुल का गाना
सुबह की सबा को बगल में दबाकर,
नया साल आया, नया साल आया
नदी, पेड़ – पौधे हमें पालते हैं
मगर इनके पर, हम क़तर डालते हैं
रखें हम इन्हें हर नज़र से बचाकर,
नया साल आया, नया साल आया
ये ख़ूनो- ख़राबे, ये बम के धमाके
ये दहशत का मंज़र, ज़मीं अब तो काँपे
दरिन्दों की वहशत से अस्मत छुपाकर,
नया साल आया, नया साल आया
कोई भी जहाँ में, न भूखा रहे अब
हो बरसात अच्छी, न सूखा रहे अब
हरित-क्रांति लेकर, ये आये दिवाकर,
नया साल आया, नया साल आया
उदय होगा ये ‘भान’ होगा सवेरा
हटेगा ये नफ़रत-ओ-फ़ितरत का घेरा
अमन-चैन लाने की वीणा उठाकर
नया साल आया, नया साल आया
रहे हर तरफ़, सिर्फ़ ख़ुशियों का आलम
सभी मिल के गायें मुहब्बत का सरगम
करे ‘भान’ रब से दुआ सर झुंकाकर
नया साल आया, नया साल आया
उदय भान पाण्डेय ‘भान’
जनवरी’ १, २०१६
कोई भी जहाँ में, न भूखा रहे अब
हो बरसात अच्छी, न सूखा रहे अब
हरित-क्रांति लेकर, ये आये दिवाकर, काश यह इच्छाएं पूरी हो जाएँ !