मुक्तक/दोहा

दोहा

साँझ भई रे साँवरे, किया न मुझको याद।
लोचन मेरे जल भरे, करते है फरियाद।

पिया मिलन को मैं चली, दूर पिया का गाँव।
सुध-बुध सारी खो गई, तपती ठण्डी छाँव।

कौन जतन अब मैं करूँ, मिल जाओ घनश्याम।
रो रो नैन पुकारते, डसे विरहणी शाम।

कोशिश कर लो साँवरे, लाख छुड़ा लो हाथ।
डोरी बाँधी प्रीत की, जन्मों का है साथ।

पुष्पा श्रीवास्तव “अनन्या श्री”