कविता

तभी मनाऊँगी नया साल

बदल गया साल
बदल गई तारीख
कैलेंडर भी बदल गया
और कुछ तो नहीं बदला
क्या हम तुम बदल सके
नहीं ना
तभी तो साल के बदलने से मुझे
कोई रोमांच नहीं हुआ
सब कुछ वैसा ही था मेरे लिए
वही तुम वही मैं
वही देश वही दुनिया
वही हालात
वही अखबार
वही खबरें
वही नेता
वही राजनीति
वही लोग वही चेहरे
वही मुखौटे
तो फिर
महज़ तारीख के बदलने पर
कैसी खुशी
किस बात की  खुशी
नहीं
यह नकारात्मक सोच नहीं है
यह सच को स्वीकार करने की
हिम्मत है
मनाऊँगी  मैं भी नया साल
जब बदलेगा जीवन
बदलेगा  देश
बदलेंगे लोग
बदलेगी सोच
बदलेंगे हालात
बदलेंगे हम तुम
एकदूसरे के  लिए
हाँ
तभी  मनाऊँगी मैं  नया साल
तुम्हारे साथ
— नमिता राकेश