लघुकथा : निःशब्द
जनगणना ड्यूटी के दौरान एक कर्मचारी का अपने कार्यालय के पीयन के घर जाना हुआ। पीयन ने खुशी खुशी अपने बाॅस की यथासामथ्र्य सेवा की। पीयन के माता पिता भी कर्मचारी के पास बैठ बातें करने लगे। जान पहचान हुई तो पता चला कि कर्मचारी के दादा बहुत गरीब परिवार से हुआ करते थे और इसी गाँव में काम किया करते थे।
इस बात का पता चलते ही पीयन के माता पिता के मन में अहम भाव उभर आया। स्वयं को उच्च साबित करने के उद्देश्य से, रूढ़िवादी विचारों से ग्रस्त पीयन के पिता ने कर्मचारी को सुनाते हुए कहा “देखो क्या समय आ गया है कल तक जो हमारे आगे काम किया करते थे, आज उनके बच्चे हमारे सामने कुर्सी पर बैठे हैं।”
कर्मचारी ने पीयन की ओर देखते हुए सुनाया “बाबा जी ! ये तो समय समय की बात है कल तक हमारे पूर्वज आपके हुक्म के गुलाम हुआ करते थे और आज आपके बच्चे हमारे हुक्म के गुलाम हैं।”
पीयन के पिता जवाब सुन निःशब्द हो गये। कर्मचारी ने अपने आंकड़े पूरे किये और अगले घर में दाखिल हो गया।
— अनन्त आलोक
प्रिय अनंत भाई जी, अति उत्तम.
बात को सोच समझ कर ना करने का यहीं परिणाम होता है .
बढ़िया !