लघुकथा

मात -पिता परमेश्वर

“क्या चल रहा आजकल ?” फोन उठाते ही जेठानी पूछीं |
“अरे कुछ नहीं दीदी, घर अस्तव्यस्त है उसे ही समेट रहीं | चारो धाम यात्रा करने चले गए थे न |”
“अच्छा ! चारो धाम कर आयी और हमें भनक भी न लगने दी |” तुनकते हुए बोलीं
“नहीं दीदी ऐसी बात नहीं है !”
“ऐसी-कैसी बात है फिर ? वैसे तो तुम कहती हो हर बात बताती हूँ , फिर इतनी बड़ी बात छुपा ली मुझसे ! डर था क्या कि हम सब भी साथ हो लेंगे | साथ नहीं चाहती थी तो मना कर देती छुपाया क्यों ?”
“अरे दीदी सुनिए तो …|”
“क्या सुनू सुमन | मैं तो सब बात बताती, पर तुम छुपा जाती हो | अरे खर्चा हम भी दे देते | माना हम पांच और तू चार है ..एक बच्चे का खर्चा सहने में तकलीफ़ थी तो बता देती | आगे से कहीं भी जायेंगे तो हम ज्यादा दे देंगे समझी | एहसान मैं नहीं लेती किसी का |”
“अरे नहीं दी सुनिए तो ..|” फोन कट |
थोड़ी देर में सुमन फिर फ़ोन मिला बोली -“दीदी गुस्सा ठंडा हुआ हो तो सुनिए आपसे पूछा था मैंने |”
“कब पूछा तुमने |” गुस्से में बोलीं जेठानी
“महीने भर पहले ही जब बात हुई थी तभी पूछा था कि आप अम्मा-बाबू जी के पास इस गर्मी की छुट्टी में गाँव चलेंगी |”
अब दूसरी तरफ शांति फ़ैल गई थी |

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

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