क्षितिज के पार
मन तो आतुर है , ऊंचा उड़ने को,
जाकर बादलो के पार
नील गगन चूमने को,
इंद्रलोक की अप्सराओं के संग,
खेलने को आँख मिचोली,
चंदा की गोद में बैठ कर
तारों से भरने को अपनी झोली,
बस मेरे मन कि उमंगें
पंख बन कर बस मेरी हो जाएँ
और सच, हम सब मिल कर
दूर क्षितिज के पार
इक नई दुनिया में खो जायें
— जय प्रकाश भाटिया
बढ़िया !