कविता

स्त्री नारी महिला

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हममें से किसी की आदत नही

किसी को छेड़ने की

किसी ने छेड़ा

नहीं छोड़ना ऐसा सोचा

बघनखे हमने भी पहन रखे

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महिला दिवस आने वाला है

गर्मी भी आने वाली है

कुछ जोश का अधिकार तो हमें भी है ….

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पीड़ा की मिट्टी

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पिता – पति – पुत्र से

स्त्री के तीन आयाम ………

और

एक स्त्री ख़ुद से

पाती दर्जा दोयम ……….

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आग्रही अज्ञ ??

आशुतोष -आसीस

आकंठ डूबी

आकुला – बिलबिला

अंतक लाई

अंदोर अंधड़ सा

स्त्री की अस्मिता

चादर मैली ही हो

ना है बर्दाश्त

दिवालियेपन सा

बदसूरत

लिजलिजा – घिनौना

अँधेरी रात

मौज़ूद थी उदासी

बहला दिल

उपजाई अनल्प

पीड़ा की मिट्टी

आक्रोश ,ले आया है

गुलाबी क्रांति

स्त्रीवादी आन्दोलन

ज्वाला भड़की

चिंगारी से चिंगारी

ज्वालामुखी है

अनवच्छिन्न नारी

आत्मसाक्षात्कार से

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*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

4 thoughts on “स्त्री नारी महिला

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी विभा जी,

    ”किसी को छेड़ने की

    किसी ने छेड़ा

    नहीं छोड़ना ऐसा सोचा

    बघनखे हमने भी पहन रखे”

    अति सुंदर.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      बहुत बहुत धन्यवाद आपका सखी _/_

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ भाई _/_

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