दोहे
झिलमिल काली ओढ़नी, मुखड़े पर है धूप |
जग सारा मोहित हुआ , तेरा रूप अनूप |१|
कश्मीरी हो सेब ज्यों , हुआ तुम्हारा रूप |
छुअन प्रेमिका सी लगे, ये जाड़े की धूप |२|
रामदुलारी रो रही, चूल्हे पर धर नीर |
भूखे बच्चों से कहे, कब तक धरियो धीर|३|
मोटे चावल में मिला , दिया जरा सा नीर |
माँ के हाथों से बनी, बिना दूध की खीर |४|
वासंती रुत आ गई , ले फूलों का हार |
नव यौवन नव यौवना , कर लो आँखें चार |५|
अम्मा को लिख भेज दो, थोड़ी दुआ सलाम |
उसके तन मन को लगे, ज्यों केसर बादाम |६|
बूढ़ी अम्मा रो रही , शहर हो गया गाँव |
ना बरगद का पेड़ है, ना पीपल की छाँव |७|
मामा तेरे खेत में , उगते लाखों लाल |
झिलमिल झिलमिल खेत है, तू भी मालामाल |८|
तन गंगा में धो लिया , धुला न मन का पाप |
मन मंदिर को धो सखा, हो तन निर्मल आप |९|
इश्वर तेरे नाम से , लगा रहे हैं भोग |
पेट बढ़ाये जा रहे , खाते पीते लोग |१०|
— अनन्त आलोक