राजनीति

भारत माता की जय का व्यर्थ राजनीतिकरण

भारतमाता की जय बोलने पर एक के बाद एक बयानों और फतवों के बीच विवाद गहराता जा रहा है। अब इस विवाद में खाप पंचायतें और धार्मिक संगठन भी कूद पड़े हैं। विगत सप्ताह मुस्लिम शिक्षा के प्रमुख केंद्र दारूल उलूम ने एक फतवा जारी करते हुए कहा है कि तर्कों के आधार पर एक इंसान ही दूसरे इंसान को जन्म दे सकता है और भारत की जमीन को तर्कों के आधार पर माता नहीं माना जा सकता इसलिए मुसलमानों को इस विवाद से अपने आप को अलग कर लेना चाहिये। ओवैसी के बयानों के बाद भड़के विवाद के बीच दारूल उलूम की खंडपीठ ने भारत माता की जय पर वहां पहुंचे लोगों के भारी संख्या में पत्रों के आधार पर उलूम की खंडपीठ ने अपना ऐतिहासिक फतवा जारी किया।

दारूल उलूम के फतवे के बाद इस नारे के समर्थन व विरोध के नाम पर काफी तेज बयानबाजी हो रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा  है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे को पीछे छोडने के लिए व पीएम मोदी की सरकार को अस्थिर करने के लिए भारत विरोधी ताक़तें इस प्रकार की ओछी हरकतों पर उतर आयी हैं। ओवैसी व दारूल उलूम के इस फ़तवे को सबसे करारा जवाब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस व बाबा रामदेव की ओर से तो अाया ही है साथ ही साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों के मैदान में उतर पडने से यह मामला अब बहुत गंभीर और संवेदनशील हो चला है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने एक बयान में कहा है कि जिन लोगों को भारत माता की जय नहीं बोलना है उन्हें भारत में रहना छोड़ देना चाहिये। कुछ इसी प्रकार का गर्मागर्म बयान बााब रामदेव ने देकर गर्मी बढा दी है।उधर दारूल उलूम ने फतवा तो जारी कर दिया है कि भारतमाता की जय वाले नारे से मुसलमान अपने आप को अलग कर लें कई मुस्लिम संगठन भी असहज अनुभव कर रहे हैं, एक प्रकार से भारतमाता की जय वाले नारे को लकर मुस्लिम समाज व धर्मगुरू बुरी तरह से विभाजित हो चुके हैं।

मुस्लिम समाज के लिए इस प्रकार के नारों से अलग होना स्वाभाविक ही हैं। मुस्लिम समाज में सामान्यतः नारी शक्ति का सम्मान नहीं होता है। उक्त समाज में नारी को भोग्या व बच्चा पैदा करने की मशीन भर माना जाता रहा है। मुस्लिम समाज की महिलायों अभी भी दोयम दर्जे की नागरिक बनी हुई हैं। मुस्लिम समाज में महिलाओं का उपयोग पुरूष वर्ग अपनी शारीरिक हवस और तड़प को मिटाने के लिये करता है। मुस्लिम समाज जब साधारण ढंग से महिला का सम्मान नहीं कर सकता तो वह भारतमाता की जय का नारा लगाये ही क्यों ?

भारतीय राजनीति में मुस्लिम समाज को राजनैतिक दलों ने केवल वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल किया है।यही कारण है कि आज देश का मुस्लिम समाज दूसरे धर्मों की भावनाओं की कोई कद्र नहीं करता है और नही करेगा। उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में भारतमाता की जय वंदे मातरम् सहित राष्ट्रवाद भी चुनावी मुददा बनने जा रहा है। मुस्लिम संगठनों के साथ परोक्ष रूप से खड़ी ताकतें ही आग में घी डालने का काम कर ही हैं। भारतमाता की जय का विरोध करने का सबसे बड़ा एक कारण और दिखलायी पड़ रहा है कि पीम मोदी अपनी रैलियों में आम जनता से दोनों हाथ ऊपर उठवाकर भारतमाता की जय ओैर वंदे मातरम् का उदघोष करवाते थे । ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारतमाता की जय के नारें के विरोध के पीछे पीएम मोदी का विरोध भी है।

भाजपा व भारत विरोधी ताकतें एक हो गयी हैं । यह ताकतें इसी प्रकार के व्यर्थ के विवाद पैदा कर रही हैं। आज की तारीख में मुस्लिम समाज सर्वाधिक असहनशील समाज हो गया है क्योंकि वह गीता, गाय, गंगा , योग, स्कूल- कालेजों मे सुर्य नमस्कार व भेाजन मंत्र आदि सभी कदमों पर अपनी उंगली उठा देता है। मुस्लिम समाज एक प्रकार से अल्पंसख्यक होने का अनुचित लाभ उठा रहा है। यही नहीं जब ग्रामीण क्षेत्रों में बहुसंख्यक समाज के लोग अपने धार्मिक कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर का उपेयाग करते हैं तो इस पर भी मुस्लिम समाज को आपत्ति हो जाती है तथा मुस्लिम समाज के वोटबैंक को लुभाने वाले सक्रिय हो जाते हैं। भारत माता की जय बोलने पर दारूल उलूम का फतवा तो एकमात्र बहाना है।

वास्तव में भारतमाता की जय का नारा कोई धार्मिक कृत्य नहीं हैं। यह गलत बात ओवैसी जैसे लोग अपनी राजनीति को चमकाने के लिए भड़का रहे हैं। वहीं कांग्रेसी व अन्य धर्मनिरपेक्ष दल अपनी राजनैतिक रोटियां सेक रहे हैं। भारतमाता की जय का उदघोष आजादी के दिवानो ने किया था। इस नारे से अंग्रेज सरकार की सत्ता हिल उठी थी। इस नारे के उदघोष से स्वतंत्रता की ऐसी चिंगारी फैली कि अंग्रेज सरकार दुम दबाकर भाग खड़ी हुई। महात्मा गांधी से पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी , लाल बहाुदर शास्त्री जैसे महान व्यक्तित्व भी भारत माता की जय के जयकारें लगाते थे।

पंडित जवाहर लाल नेहरू की ‘भारत एक खोज’ में भारतमाता की जय का उदघोष किया गया है। जब भारत किसी भी खेल प्रतियोगिता में व अन्य किसी प्रकार की स्पर्धाओं में भाग लेता हे तो अनायास ही भारतमाता की जय ही निकलता है। आज भारत को जो आजादी मिली है तथा जो तथाकथित सेकूलर लोग अब इसका विरोध कर रहे हैं वह एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा बन चुके हैं यह तथाकथित लोग भारत को किसी भी प्रकार से विश्व की ताकत नहीं बनने देना चाह रहे हैं। भारत माता की जय का विरोध करने वाले लोग बहुत ही अधिक असहनशील हो गये हैं । अभी बिजनौर में एक एनआइ्रए अधिकारी की सनसनीखेज ढंग से हत्या हो जाती है लेकिन इन लोगों की ओर से एक भी संवेदना व्यक्त करने वाला बयान नहीं आता है।

संभवतः इस नारे के खिलाफ इसलिए फतवा जारी किया गया है क्योंकि भारतमाता को प्रायः केसरिया व नारंगी रंग की साड़ी पहने हाथ में भगवा ध्वज लिये हुये चित्रित किया जाता है। भारत में भारतमाता के बहुत से मंदिर हैं। काशी का भारतमाता का मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। जिसका उद्घाटन स्वयं महात्मा गांधी ने किया था। वाल्मीकि रामायण में भारतमाता का उल्लेख ,“जननी जन्मभूश्चि स्वर्गादपि गरीयसी” के रूप में किया गया है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के 19वीं शताब्दी के अतिम दिनों में भारतमाता की छवि में निखार आया। सबसे पहले किरन चंद्र बंदोपाध्याय भारतमाता कुंपर सबसे पहले नाटक खेला था। बंकिम के उपन्यास आनंदमठ में लिये गये वंदेमातरम में भी भारतमाता का उल्लेख किया गया है।

अवनींद्र नाथ ने भारतमाता को हिंदू देवी के रूप में चित्रित किया है। 1983 में विश्व हिंदू परिषद ने 1983 में भारतमाता का मंदिर बनवाया। भारतमाता का स्वरूप अखंड ,मजबूत और स्वाभिमानी है। जबकि असहनशील लोगों की नजर में भारत खंड -खंड विभाजित है। भारतमाता की जय का नारा स्वतःस्फूर्ति मन से निकलता हैं । संघ की ओर से भी बयान जारी कर कहा गया है कि भारत माता की जय का नारा किसी पर थोपा नहीं जा सकता। देश के मुस्लिम समाज को अब आगे आकर अन्य धर्मो का भी मान सम्मान रखना होगा तभी उनका भी मान सम्मान होगा ।

— मृत्युंजय दीक्षित

One thought on “भारत माता की जय का व्यर्थ राजनीतिकरण

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख!

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