संस्मरण

नभाटा ब्लाॅग पर मेरे दो वर्ष-4

मैंने अगला लेख लिखा था ‘हत्यारे के भाई गांधी’। इस लेख में बताया गया था कि गांधी ने भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को दी जाने वाली फांसी को रोकने के लिए कुछ नहीं किया, लेकिन स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे अब्दुल रशीद को अपना भाई बताया और उसको माफ कर देने की वकालत की। इसका लिंक नीचे है।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…

इस लेख को भी नभाटा ने कई दिन तक लाइव नहीं किया, फिर मैंने ईमेल भेजी तो कई दिन बाद उसे लाइव किया गया।

मेरा अगला लेख था- ‘मुस्लिम तुष्टीकरण के जनक गांधी’ जैसा कि इसके शीर्षक से स्पष्ट है, इसमें गांधी और नेहरू की मुस्लिमपरस्त नीतियों का जमकर विरोध किया गया था। जब यह लेख एक सप्ताह से अधिक समय तक भी लाइव नहीं किया गया तो मैंने पूछताछ की। इसके उत्तर में नभाटा के सम्पादक मंडल ने बताया कि इसकी कई पंक्तियों पर आपत्ति की गयी है। उन्होंने यह नहीं बताया कि यह आपत्ति किसने और किन पंक्तियों पर की है।

अभी तक मेरा ईमेल व्यवहार नभाटा के सम्पादकीय टीम के विवेक कुमार के साथ ही हो रहा था। जब मैंने दोबारा पूछा तो नभाटा के प्रधान सम्पादक नीरेन्द्र नागर की ईमेल प्राप्त हुई जिसमें उन्होंने तुष्टीकरण पर अपना ज्ञान बघारा था और मुझे यह समझाने की चेष्टा की कि गांधी ने मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं किया था। इसके साथ ही मेरे ऊपर एक प्रकार से यह आरोप भी लगाया कि मैं परधर्मद्वेषी अर्थात् साम्प्रदायिक हूं।

इसके जबाब में मैंने उनको लिखा कि गांधी स्पष्ट रूप से मुसलमानों के प्रति पक्षपातपूर्ण और हिन्दुओं के प्रति उपेक्षापूर्ण थे। यही मेरे ब्लाॅग का मुख्य विषय है। मैंने अपने साम्प्रदायिक होने से भी इन्कार किया। इसके साथ ही मैंने उनसे यह कह दिया कि मेरे लेख के जिन शब्दों या वाक्यों को आप आपत्तिजनक मानते हैं उनको सुधारकर या हटाकर लेख लाइव कीजिए। इसके कई दिन बाद यह लेख लाइव हुआ।
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…

इसमें से निम्न वाक्य को हटाया गया था।
“गाँधी यह समझने में असफल रहे कि मुसलमानों को संतुष्ट करना कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है. वे तब तक संतुष्ट नहीं हो सकते, जब तक वे पूरी दुनिया को दारुल-इस्लाम न बना लें.”

मेरे इस लेख पर बहुत कमेंट आये और उनमें से अधिकांश मेरे समर्थन में ही थे। एकाध विरोध में भी आया परन्तु उनकी बातों में कोई तर्क नहीं था। एक सेकूलर पाठक ‘स्वामी चन्द्रमौली’ ने मुझे गांधी जैसे सच्चे, ईमानदार आदमी की आलोचना के लिए नर्क में जाने का श्राप दिया। इसके जबाब में मैंने लिखा कि ‘स्वामी जी, यदि गाँधी जैसे पाखंडी और नेहरू जैसे गद्दारों की सच्चाई उजागर करने से मुझे नर्क भी प्राप्त होता है, तो मैं सदा सर्वदा के लिए नर्क भोगने के लिए तैयार हूँ। आपका आशीर्वाद सिर-माथे।’

विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

7 thoughts on “नभाटा ब्लाॅग पर मेरे दो वर्ष-4

  • Man Mohan Kumar Arya

    Satya ka Grahan karne aur asatya ko chodne me sarvada udyat rahna chahiye. Satya ko manna aur manwana mujhe adjust hai. Aise anek vaakya Swami Dayanand ji ke hain. Aap unke sachche pratinidhi hain. Gandhiji aur Nehruji ke bare me mere vichar bhi apke purntaya anurup hain. Sadar.

  • विजय भाई ,यह लेख तो सचमुच उच्कोटी के थे . मुझे एक बात याद आ गई , पचीस तीस साल पुरानी बात है , किसी मसले पर बात चल रही थी तो मैंने गांधी जी के पक्ष में कुछ बातें कहीं तो एक हमारा दोस्त गुस्से में आ गिया और बोला , ” ओह नामर्द गांधी जिस ने भगत सिंह राज गुरु सुखदेव को मरवा दिया ” और भी बहुत बातें उस ने कहीं और हम भी उस से कुछ नाराज़ हो गए .फिर इस मसले पर कभी बात नहीं हुई . इस के बाद एक आद धर्मी से बात हुई तो वोह भी गांधी को गालिआं निकालने लगा कि उन को आद्धर्मी कहना गांधी का पाखंड था . फिर उस दोस्त ने कुछ किताबें ला कर मुझे दीं जिस में गांधी और आंबेडकर के एक दुसरे को ख़त लिखे हुए थे और यह एक जात पात तोड़क मंडल के बारे में थे , मुझे बहुत बातें तो याद नहीं लेकिन आप के नभाटा के इन ब्लॉग से बहुत कुछ पता चला कि आज जो यह मैस देश में है वोह सैकुलिर्ज्म की वजाह से है .

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब ! लोगों को गाँधी की सच्चाई मालूम नहीं है. केवल वे ही बातें मालूम हैं जो सरकारी तौर पर बताई गयी हैं. जब लोगों को गाँधी की असलियत पता चलती है तो उनको बहुत झटका लगता है और जल्दी स्वीकार नहीं कर पाते. लेकिन सत्य तो सत्य है.

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब ! लोगों को गाँधी की सच्चाई मालूम नहीं है. केवल वे ही बातें मालूम हैं जो सरकारी तौर पर बताई गयी हैं. जब लोगों को गाँधी की असलियत पता चलती है तो उनको बहुत झटका लगता है और जल्दी स्वीकार नहीं कर पाते. लेकिन सत्य तो सत्य है.

  • लीला तिवानी

    प्रिय विजय भाई जी, सच्चाई को उजागर करने में आपकी बेबाकी सचमुच तारीफ़-ए-काबिल है.

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, बहिन जी. बहुत बहुत आभार. आपका आशीर्वाद बना रहे.

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, बहिन जी. बहुत बहुत आभार. आपका आशीर्वाद बना रहे.

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