संस्मरण

मेरी कहानी 127

पिंकी की शादी हो गई थी और दुसरे दिन सम्धिओं की ओर से उन के घर के सभी सदस्यों और करीबी रिश्तेदारों ने औरतों की मिलनी के लिए आना था, जिन में पिंकी की सास की मिलनी ज़्यादा महत्व रखती थी। इस दिन भी  बारिश हो रही थी लेकिन अब हमें कोई ज़्यादा चिंता नहीं थी क्योंकि एक तो ज़्यादा मैम्बर नहीं थे, दूसरे बड़ा काम तो हो गया था। खाना  बनाने के लिए मेरी बहन सुरजीत कौर, कमल, अमरजीत, और जसवीर ही बहुत थीं लेकिन कुछ और औरतें भी साथ हो गई थीं। महमानों के आने से पहले ही पूरी तयारी हो गई थी। महमान तकरीबन एक बजे आये और मर्द लोग जल्दी से टैंट के नीचे आ कर बैठ गए किओंकी कुछ कुछ बारिश हो रही थी, औरतें और बच्चे घर के भीतर चले गए। जो औरतें काम कर रही थीं उन्होंने अब घर के भीतर की औरतों को सर्व करने का काम सम्भाल लिया था और बाहर टैंट में बैठे महमानों को सर्व करने के लिए बलवंत जसवंत निंदी और संदीप ने अपना काम सम्भाल लिया। मैं, बहादर, चाचा मघर सिंह और मेरे बहनोई सेवा  सिंह महमानों के साथ बैठ गए। टेबलों पर चाय मिठाई और अन्य पदारथ आ गए और सभी एक दूसरे से बातें करने लगे।

शादी के वक्त तो बरात में बहुत लोग होते हैं लेकिन समधिओं की ओर से आये नज़दीकी रिश्तेदारों से कोई ख़ास परिचय नहीं हो पाता और अब औरतों की मिलनी के समय ही यह अच्छा अवसर होता है। अब हम सभी एक दूसरे के करीब हो गए थे और खूब हंसी मज़ाक चल रहा था। भा जी अर्जन सिंह ही अकेले शख्स थे जो बियर शराब या मीट का सेवन नहीं करते थे, अन्य सब ड्रिंक लेते थे लेकिन इस में इंडिया और इंग्लैण्ड में एक फरक है कि इंग्लैण्ड में लोग ड्रिंक को एन्जॉय करते हैं और बातें करते हैं। हर एक को पता होता है कि उस की क्या लिमिट है। उस समय जब मैं भारत से आया था तो मेरे मन में शराबी की एक तस्वीर होती थी कि लोग शाराब पी कर गलिओं में गिरते फिरते हैं उन के कपडे कीचड़ से भीगे हुए हैं लेकिन  यहां आ कर तो मैं हैरान हो गया था कि हर स्ट्रीट के कॉर्नर पर एक पब्ब था और गोरे  लोग अपनी बीविओं और बच्चों के साथ जाते थे, बच्चे चिल्ड्रन रूम में डार्ट या स्नूकर खेलते रहते और मां बाप बार में बैठे बीयर पीते और गप्पें हांकते रहते।

                     आज तो भारत में भी यही चलन शुरू हो गया है। बीयर शराब या अंडा मीट खाना अच्छा है या बुरा, यह मेरे लिखने का विशा नहीं है, मैं तो वह लिख रहा हूँ जो यहां है और इन बातों पर पर्दा डाल  कर छुपा देना मेरी फितरत में नहीं है। यह बातें मैं इस लिए भी लिख रहा हूँ कि अक्सर बहुत लोग सोचते होंगे कि बार बार अपनी कहानी में मैं मीट शराब की बातें क्यों लिख देता हूँ तो इस में मेरा कहना यही है कि यह बातें यहां की ज़िंदगी का एक हिस्सा ही है। जब रोमन लोगों ने इंग्लैण्ड पर कब्ज़ा किया था तो उस वक्त भी इंग्लैण्ड में बीयर परचलत थी। बियर को लोग खाने के साथ पीते थे जैसे हम भारत में खाने के साथ पानी पीते हैं। अब तो मुझे भारत के गावों का ज़्यादा पता नहीं है लेकिन जब मैंने भारत छोड़ा था तो पीने के लिए लस्सी ही होती थी जो पिआस बुझाने के साथ साथ शरीर को ताकत भी देती थी, इसी तरह बीयर में भी ऐसे तत्व हैं जो सिहत के लिए अच्छे होते हैं लेकिन थोड़ी मिक़दार में पिएं तो। गर्मिओं के दिनों में तो पब्बों के गार्डनों में टेबल चेअरज लोगों से भरे होते हैं, लोग बीअर पी रहे होते हैं और साथ ही बारबरकिउ हो रहा होता है, बहुत से गर्म गर्म कोयलों पर मच्छी और मीट भून रहा होता है और लोग खाते हैं और बीअर का मज़ा लेते हैं। सड़क पर चलते चलते किसी को पियास लगती है तो कहते हैं, चलो यार ग्लास पीते हैं। बीयर में बारले यानि जौ माल्ट और हॉप्स (एक तरह के फूल ) होते हैं और काफी मात्रा  में शुगर डाली जाती है, इसी लिए कहते हैं कि ज़्यादा बीयर पीने से वज़न बढ़ता है और इस को फर्मेंट करने के लिए यानि इस को बीयर बनाने के लिए इस में यीस्ट डाली जाती है। इस यीस्ट की गोलिआं जिस में बी विटमॅन होते हैं, कैमिस्ट शॉप से भी मिलते हैं और मज़े की बात यह है कि जब फैक्ट्री में बीयर बनती है तो बीयर साफ़ हो कर नीचे बैठी हुई मट्टी से ही यीस्ट की गोळ्यां बनती हैं जिन को हम विटमॅन समझ कर लेते हैं। उस समय तो लोग घरों में बीयर बनाते थे और पीते थे और घर आये महमान को पिलाते थे लेकिन उस समय बीयर ज़्यादा स्ट्रॉन्ग नहीं होती थी। स्ट्रॉन्ग बीयर ज़्यादा शूगर डालने से ही  होती है।  उस समय अंगूरों से वाइन बनाना अभी ज़्यादा परचलत नहीं था और बीयर ही होती थी।
हम भारत का पुराना इतहास पड़ते हैं तो अक्सर बात सोम रस और सुरा शराब की होती है जो उस समय लोग पीते थे। सोम रस एक जड़ी बूटी से निकलता है जो मैंने एक डकुमेन्ट्री में भी देखा था। यह जड़ी बूटी अफगानिस्तान की दुकानों में अभी भी मिलती है जिस को लोग गर्म पानी में डाल  कर चाय की तरह पीते  हैं। डकुमेन्ट्री में बताया गया था कि इस का टेस्ट कुछ कडवा सा है। हो सकता है, इस जडी बूटी में कुछ चीज़ें जैसे गुड़ बगैरा डाल कर उस समय के लोग शराब बनाते होंगे। मैं बात कर रहा था बीअर की तो बहुत साल हुए जब मैं फैक्ट्री में काम किया करता था तो वहां एक अँगरेज़ ने मुझे बताया था कि यूं तो इंग्लैण्ड में लोग बीअर सदिओं से पीते आ रहे हैं लेकिन इस का सेवन ज़िआदा तो इंडस्ट्रीयल रैवोलुशन के आने से बड़ा है। इस समय नई नई मशीनें इज़ाद हुई थी जिन की वजह से आम शहर फैक्ट्रियों से भर गए थे, काम बहुत था, इंग्लैण्ड ने बहुत देशों पर कब्ज़ा कर लिया था और इन देशों में इंग्लैण्ड का बना सामान ही जाता था, इंग्लैंण्ड में कोई यूनियन नहीं होती थी और लोगों को बहुत बहुत घंटे काम करना पड़ता था, इन कारखानों को चलाने के लिए कोयले की जरुरत पड़ती थी तो लोग इन कोएले की कानों में काम करते थे और छोटे छोटे बच्चे भी साथ जा कर काम करते थे। अब इतने घंटे काम करने के लिए बीयर ही लोगों की  थकावट दूर करने का जरिया था। बीयर बहुत सस्ती मिलती थी और कई कारखानों के मालक तो बीयर फ्री ही पिलाते थे ताकि मज़दूर खुश हो कर ज़्यादा काम करें। इस बीयर का एक फायदा यह भी था कि उस समय काम बहुत गंदे होते थे और क्योंकि बीयर पीने से पिछाब ज़्यादा आता है, इसी लिए इस के पीने से शरीर ठीक रहता था।
जितनी किसम की बीयर इंग्लैण्ड में है उतनी दुन्याँ  में कहीं नहीं है। आयरलैंड की ब्रीऊ की हुई गिनीज़ तो सब से अच्छी बीयर है और इस में आयरन बहुत होता है। इसी तरह एक और बीयर है जिस को स्टाउट बोलते हैं। इन दोनों को मिक्स करके पीने से ताकत मिलती है। जिन लोगों में आयरन की कमी होती है, कुछ लोग गिनीज़ और स्टाउट मिक्स कर के पीते हैं और कुछ लोग हैल्थ ड्रिंक बनाने के लिए इस में दूध भी डाल लेते हैं। जब अँगरेज़ इंडिया पर हकूमत करते थे तो उस समय बीयर इंग्लैण्ड से इंडिया आती थी और एक बीयर का तो नाम भी इंडिया पेल एल था। स्टैफोर्डशायर का पानी यहां अच्छा माना गया है और कहते हैं कि इस पानी से बनी  बीयर अच्छी होती है। यह जो लागर बीयर है जो कुछ पीले रंग की होती है( इंडिया में सिर्फ लागर ही बिकती है ) यह पहले बहुत कम  होती थी। 1970 के करीब ही यह सिर्फ 2 % होती थी लेकिन अब तो यह 30 % से भी ज़्यादा बिकती होगी। इंडिया में इस का रिवाज़ तो पचास साठ पहले शुरू हुआ था। मुझे याद है 1967 में मेरी शादी के वक्त कहीं कहीं बीअर मिलती थी और दुकानदार बोरिओं में बर्फ डाल कर उस में बीयर की बोतलें ठंडी किया करते थे लेकिन आज तो लिबरलाइजेशन और ग्लोबलाइज़ेशन की वजह से इंडिया में बहुत किसम की बीयर बन रही है और लोग आम पीते हैं और इंडिया दूसरे देशों को भी एक्सपोर्ट करता है। यहां के स्टोरों में इंडिया की बनी  बीयर मिल जाती है।
एक बात और भी है कि यहां इंग्लैण्ड में बहुत किसम की बीयर बनती है वहां अन्य यूरपीन देशों में वाइन बहुत किस्मों की बनती है जो ज़्यादा तर तो अंगूरों से बनती है लेकिन बहुत से दूसरे फलों से भी बनती है। फ्रांस स्पेन पुर्तगाल और बहुत से दूसरे देशों में बहुत बनती है। इंग्लैण्ड में वाइन कम बनती है शायद यहां के मौसम की वजह से। यूरप में सौ सौ दो दो सौ एकड़ अंगूरों के फ़ार्म हैं। फैक्ट्री में अंगूरों का रस निकाल कर और कुछ और चीज़ें डाल कर बड़े बड़े लकड़ी के बने ढोलों (बैरल )में यह वाइन भर दी जाती है और इन को बनने के लिए ज़मीन के नीचे बने सैलर  में रख दिया जाता है क्योंकि ज़मीन के नीचे गर्मी होती है । यह सैलर  कई कई मील तक ज़मीन के नीचे बने होते हैं, यह सैलर  इतने बड़े और लम्बे होते हैं कि पैदल चल कर जाने के लिए बहुत वक्त लगता है। कई कई साल तक यह वाइन के बैरल पड़े रहते हैं और वाइन एक्सपर्ट इन को लगातार चैक करते रहते  हैं और मैच्योर होने पर जब यह वाइन बोतलों में भरी जाती है तो उस पर वाइन की उम्र और स्ट्रेंथ भी लिखी जाती है। पांच साल पुरानी, दस साल पुरानी या इस से भी ज़्यादा पुरानी वाइन उस की कीमत मुकर्रर करती है। कुछ ख़ास बोतलें तो सौ साल पुरानी भी होती हैं जिन की कीमत भी लाखों डॉलर होती है। फ्रांस की शैम्पेन बहुत प्रसिद्ध है और एक और चीज़ भी बहुत फेमस है, वोह है मार्टल ब्रांडी जो कुछ गर्म होती है। वैसे तो लोग ब्रांडी यूं भी पीते हैं लेकिन सर्दी जुकाम में गर्म पानी डाल कर भी लोग पीते हैं।
हा हा, इस बीयर वाइन की सैर से निकल कर मैं फिर से टैंट में महमानों के साथ बैठ जाता हूँ। कुछ कम कुछ ज़्यादा सभी लोग मज़े कर रहे थे और ऊंची ऊंची हंस रहे थे। बारिश भी कभी कम हो जाती और कभी ज़्यादा। टैंट की तरपाल बारिश के पानी  से भर जाती और नीचे की तरफ खिसकने लगती। बलवंत एक ब्रूम ले कर तरपाल को ऊपर की तरफ धकेल  देता और साथ ही सारा पानी दोनों तरफ गिर जाता। बलवंत की इस सर्विस को देख कर महमान हंस पड़ते और बारिश की बातें करने लगते। उधर घर के भीतर औरतों की महफ़िल लगी हुई थी, जब कोई मिलनी होती तो खूब हंसी और तालिओं की आवाज़ सुनाई देती। क्योंकि  हम उन की महफ़िल को भंग नहीं करना चाहते थे, इस लिए सभी इधर ही थे, मैंने तो बाद में इस महफ़िल का सीन विडिओ में ही देखा था। गर्मिओं के दिन यहां बहुत बड़े होते हैं, इसी लिए गर्मिओं के दिनों में शादियां बहुत होती है, कारण यह ही है कि एक तो ठंड नहीं होती और दूसरे देर रात तक बाहर बैठे मज़े कर सकते हैं। याद नहीं कितने बजे खाना दिया गया और बाद में हिल जुल शुरू हो गई और महमान जाने के लिए तैयार होने लगे।
अमरजीत और जसवीर ने हमारे समधी साहब श्री अजीत  सिंह हंसपाल के लिए एक हार तैयार किया जिस में गाजर मूली गोभी और अन्य सब्जिओं के टुकड़े डाले हुए थे। याद नहीं किया किया बातें हुईं लेकिन इतना याद है कि इस पर खूब हंसी मज़ाक हुआ था। सभी गाड़ियों में बैठने लगे थे। जब पिंकी गाड़ी में बैठ गई तो आज भी मेरे दिल को कुछ कुछ हो रहा था। एक तरफ ख़ुशी थी और दुसरी तरफ बेटी को एक नई दुनिआ में जाते हुए देख मन को कुछ कुछ हो रहा था। यूं तो मुझे सभी बच्चों से पियार रहा है लेकिन पिंकी के साथ बहुत ज़्यादा लगाव था और अभी भी वैसा ही है। आज तक किसी भी बात को ले कर कोई मशवरा लेना हो तो पहले पिंकी के साथ ही शेअर करता हूँ। जब यह काफ्ला  लंडन को रवाना हुआ तो साथ ही हमारी बहन सुरजीत कौर और उस का परिवार भी लंडन को चले गए । सभी औरतों ने मिल कर बर्तन साफ़ कर दिए और गैरेज में रख दिए और धीरे धीरे सभी चले गए। अब मैं कुलवंत रीटा और संदीप घर में रह गए थे। अकेली पिंकी ही घर से गई थी लेकिन लगता था, घर सूना हो गया था। सभी उदास उदास बैठे थे। मैंने उठ कर एक ग्लास में कुछ विस्की डाली और पी गया। कुछ देर बाद सोने के लिए चला गया। सुबह उठा तो मैंने पिंकी को आवाज़ दी लेकिन जल्दी ही समझ आ गया। धीरे धीरे दिन बीतने लगे और ज़िंदगी समान्य होने लगी।
चलता…

2 thoughts on “मेरी कहानी 127

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, हर विषय पर आपकी गहरी पकड़ और गहरा ज्ञान देखकर मन प्रसन्न हो जाता है. आपकी भाषा-शैली अब महान साहित्यकार जैसी होती जा रही है, यह भी बहुत खुशी की बात है. बीयर और मिलनी की रोचक बातों का मेल बहुत अच्छा लगा. अति सुंदर विचार और अति सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई.

    • लीला बहन , बहुत बहुत धन्यवाद .

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