ग़ज़ल
इन्सानो के दिलों में जलती अगन क्यों है
भैया को भाई से भी इतनी जलन क्यों हैं
जब तक रहा मोती सीप में कोई कद्र नहीं
यूँ पता चला मैं मोती हूँ फिर मनन क्यों है
मुसाफिर हूँ प्यार का मेरी मंजिल रूह है
फिर भी तन पर ये चर्चा का चलन क्यों है
इन्सान तो बदल देते हैं भगवान भी यहाँ
फिर झुठे दिलों से यूँ करते भजन क्यों है
बेख़बर ये है जिन्दगी का नाटक सुहाना
पर्दा गिरेगा एक दिन फिर अहम क्यों है
— बेख़बर देहलवी