संस्मरण

मेरी कहानी 135

कड़ी 132 और 133 में मैंने रीटा की शादी की बातें लिखी थीं। साथ ही भैया अर्जुन सिंह जी की बात लिखी थी, शादी के कुछ दिन बाद ही वोह कष्ट भरे दिन छोड़ कर किसी और संसार में चले गए थे, यहाँ से कभी कोई वापस नहीं आता। छोटा भाई निर्मल सिंह इंडिया को वापस चले गया था और घर में हम तीनों ही थे, कुलवंत मैं और संदीप। पहले पहल हम को बहुत अकेलापन महसूस हो रहा था लेकिन धीरे धीरे सब सामान्य हो गया। अब कभी हम पिंकी को मिलने चले जाते और कभी रीटा को। पिंकी कुछ दूर होने के  कारण इतना जल्दी नहीं जा होता था लेकिन फिर भी हम कोशिश करते जल्दी जल्दी जाने की और कभी कभी चरणजीत और पिंकी अमीता को ले कर आ जाते और घर में रौनक हो जाती किओंकी रीटा ही थी जो नज़दीक थी और नज़दीक होने के कारण वह भी आ जाती। शाम को संदीप मयूजिक सेंटर लगा देता और सभी डांस करने लगते और वातावरण मज़ेदार हो जाता। इस में सब से अच्छी बात यह थी और अब भी है कि हमारे जमाई भी बिलकुल हमारे सुभाव से मेल खाते हैं और इस में हम भागयवान ही रहे हैं कि दोनों जमाई बेटिओं की बहुत इज़त करते हैं और इस के लिए हम भगवान् का धन्यवाद करते हैं कि दोनों बेटियां अपने अपने घरों में सुखी हैं। रीटा को जब हम मिलने जाते तो हमारे जमाई कमलजीत के दादा जी बहुत खुश होते और कमलजीत के पिता जी मंगल सिंह तो ख़ुशी से फूले ना समाते और उसी वक्त अपने भांजे देव को टेलीफोन कर देते और वह उसी वक्त आ जाता। देव भी हमारी उम्र का है। देव बहुत मजाकिआ तबीयत का है। कमलजीत तीन भाई हैं। जब हम क्लब्ब को जाते तो कमलजीत और उन के भाई अपने दादा जी को भी साथ ले जाते। दादा जी के घुटने खराब थे और उन को गाड़ी में बिठाना बहुत मुश्किल होता था लेकिन वह उन को पकड़ कर धीरे धीरे गाड़ी में बिठा देते। कलब्ब में जब हम ताश खेलते तो दादा जी बराबर खेलते। दो तीन घंटे हम वहां रहते और फिर घर आ जाते और बहुत बातें करते।

             शादी के बाद रीटा बस पकड़ कर काम पे जाती थी और यह बहुत मुश्किल होता था क्योंकि जाने आने में बहुत वक्त लग जाता था। शादी को कई महीने हो गए थे और अब रीटा को बच्चा होने वाला था। रीटा ने ट्रांसफर के लिए एप्लिकेशन दे रखी थी लेकिन जवाब नहीं मिलता था। इसी दौरान एक ऐसी बात हो गई जिस के कारण अब रीटा को बर्मिंघम ट्रांसफर होना आसान हो गया। रीटा बैंक में बहुत खुश थी और सीनीअर उस से बहुत खुश थे। कस्टमरज के  साथ हंस हंस कर बातें करने और उस के अच्छे विवहार के कारण से ही उस को जल्दी प्रोमोशन मिल गई थी। एक दिन वह काउंटर पर ग्राहकों को सर्व कर रही थी, काफी बड़ा किऊ लगा हुआ था और जब एक काला जमेकन शख्स काउंटर पर आया तो उस ने गन निकाल ली और सारे पैसे उसे दे देने की धमकी दी। रीटा ने उसी वक्त सारे पैसे उस के आगे फेंक दिए और साथ ही एमरजैंसी सविच दबा दिया। सारी बैंक में जोर जोर से घंटी बजने लगी और वह काला पैसे ले कर भाग गया। जल्दी ही सारा स्टाफ और मैनेजर रीटा के पास आ गए। कुछ ही मिनटों में पुलिस की गाड़ियां भी आ गईं। पुलिस ने आते ही पहले रीटा को पुछा कि वह ठीक ठाक थी या नहीं। कुछ पुलिस वाले ग्राहकों को पूछने लगे कि उन को कोई चोट आई हो तो बताएं और साथ ही उस काले के हुलिए के बारे में तफ्तीश करने लगे। रीटा शुरू से ही दिल की बहादर है और कभी डरने वाली नहीं है लेकिन मैनेजमेंट उसे बार बार पूछ रही थी कि वोह ठीक ठाक है या नहीं लेकिन वह कहती कि वोह नॉर्मल है। इस के बावजूद भी मैनेजर रीटा को घर छोड़ गिया और एक हफ्ते की छुटी दे दी। घर आ कर रीटा हमारे साथ हंस रही थी कि कुछ हुआ तो नहीं था, फिर भी मैनेजमेंट इतना कुछ कर रही है। दुसरे दिन मैनेजर और उस का असिस्टैंट रीटा को मिलने फिर आ गए और फूलों का बुके ले कर आये। बहुत देर वोह बैठे रहे और फिर चले गए। कुछ दिन बाद रीटा के साथ काम करने वाली कुछ लड़कियां  भी फूल ले कर आ गईं। जब वोह चले गईं तो मैं रीटा से हंसने लगा कि ” रीटा ! काले ने तुझे गन क्या दिखाई, तू तो स्टार बन गई “, रीटा हंसने लगी।
रीटा ने ट्रांसफर के  लिए अप्लिकेशन तो बहुत देर पहले की दी हुई थी लेकिन मैनेजमेंट उसे छोड़ना नहीं चाहती थी लेकिन इस घटना के तकरीबन दो हफ्ते बाद ही मैनेजर ने उसे बता दिया कि उस की ट्रांसफर CAPEHILL की ब्रांच में कर दी गई थी। यह ब्रांच रीटा के सुसराल के घर से पांच मिनट ही दूर थी। अब तो काम आसान हो गिया। अब रीटा मज़े से दस मिनट पहले घर से निकलती और काम पे लग जाती। सुसराल में सभी रीटा से खुश थे, ख़ास कर दादा जी। कमलजीत की दो बहनों की शादी बहुत पहले हो चुकी थी और रीटा  के आने से एक और नन्हें महमान का इंतज़ार बेसब्री से हो रहा था ख़ास कर दादा जी को। दिन बीतते जा रहे थे और बेबी आने से कुछ हफ्ते पहले रीटा को काम से छुटी मिल गई। बर्मिंघम तो हमारे लिए घर जैसा ही था क्योंकि बर्मिंघम सिर्फ बीस किलोमीटर दूर ही है। बुआ, बहादर और अन्य दोस्त रिश्तेदार सब बर्मिंघम में ही है, इस लिए बर्मिंघम को जाना आना लगा ही रहता था और हम रीटा को मिल लेते और साथ ही मंगल सिंह और कमलजीत के दादा जी से मुलाक़ात हो जाती। कभी कभी मंगल सिंह और दादा जी हम को मिलने आ जाते। मंगल सिंह के साथ मेरा रिश्ता एक समधी होने के नाते कम और एक दोस्त के नाते ज़्यादा है।
दिन बीतते जा रहे थे और एक दिन हमें खबर मिल ही गई, जिस की इंतज़ार बहुत दिनों से थी। रीटा ने एक बेटे को जनम दिया था। सब तरफ खुशीआं फ़ैल गईं। मैं और कुलवंत इस लिए खुश थे कि हम एक दोहती और एक दोहते के नाना नानी बन गए थे। मैं कुलवंत और संदीप रीटा को मिलने डडली रोड हसपताल जा पहुंचे। मंगल सिंह और उन का सारा परिवार पहले ही पहुँच  चुका था । मंगल सिंह मेरे साथ हाथ मिला कर मेरे गले से लग गया  और मुझे वधाई दी। रीटा को हम मिले और अपने दोहते को उस की cot से उठाया। देख कर रूह खुश हो गई। एक घंटा हम वहां रहे और मंगल सिंह के साथ उन के घर आ गए। घर आ कर मंगल सिंह ने देव को टेलीफोन किया और बोले,” ओ भांजे ! जल्दी से आ जा, गुरमेल सिंह आया हुआ है “, देव का घर कार में दो मिंट की दूरी पर ही था और जल्दी ही आ गया। मंगल सिंह का बहनोई वहीं ही था और अब मिएँ की दौड़ मसीत तक की कहावत के अनुसार सभी इकठे हो कर पब्ब को चल पड़े। दादा जी को लड़कों ने कार में बिठाया और पब्ब को चल पड़े जो नज़दीक ही हाई स्ट्रीट में था। दादा जी आज शादी के दिन से भी ज़्यादा खुश थे। पब्ब की बार में जाते ही दादा जी ने जेब से अपना बटुआ निकाला और जो जो किसी ने पीना था, उस का ऑर्डर बार मैन को कर दिया और बार मैन को भी उस का पसंदीदा ड्रिंक ले लेने को कह दिया। इस के बाद दादा जी ने बार में बैठे सभी लोगों के लिए भी आर्डर दे दिया।
दादा जी का यह रूप मैंने पहली दफा देखा था । बड़ी मुश्किल से वह छड़ी लिए एक एक टेबल पर जाते और उन को पूछते कि उन्होंने किया पीना था। बार के सभी लोग गोरे लोगों को छोड़ कर दादा जी को जानते ही थे और दादा जी को बधाइयां दे रहे थे। अब हम अपने टेबलों पर बैठ गए थे। मंगल सिंह के बहनोई जस साहब जो राधा सुआमी थे और उस ने पाइन ऐपल जूइस ले लिया। मैं भी ज़्यादा नहीं पीता था लेकिन आज मंगल सिंह और दादा जी की ख़ुशी में मैं भी शामिल हो गया। गाड़ी चलाने का कोई फ़िक्र नहीं था किओंकी गाड़ी कुलवंत ने चलानी थी। ज़्यादा तो दादा जी भी नहीं पीते थे लेकिन आज उन्होंने भी कुछ ज़्यादा ही ले लिया था। एक बात दादा जी और मंगल सिंह की बहुत अच्छी थी और यह थी दादा जी और मंगल सिंह का आपस में लगाव। वह बाप बेटा न हो कर गहरे दोस्तों की तरह थे। मंगल सिंह ज़्यादा पीते थे लेकिन उन को कभी किसी ने गिरते नहीं देखा था, और आखर तक बहुत अच्छी बातें करते थे जैसे उन्होंने कुछ पिया ही ना हो। दादा जी के मुंह से एक बात मैंने बहुत दफा सुनी थी, अक्सर मंगल सिंह को मुख़ातब हो कर कहा करते थे, “देख सुन ! जब मैं मर गया तो मेरे मुंह में कोई अमृत शमरत नहीं डालना, यह पखंड करने की कोई जरुरत नहीं, सिर्फ एक चमचा मेरे मुंह में विस्की का डाल देना।”, दादा जी की इस बात पर सभी हंस पड़ते। दादा जी एक ज़िंदा दिल इंसान थे और दानी भी बहुत थे।
देर रात तक बार में हंसी मज़ाक होता रहा। देव अपने घर से  एक बैग पकौड़ों का भर कर पहले ही ले आया था, जो उस की गाड़ी में पड़े थे लेकिन यह पकौड़े बार में नहीं ले आ सकते थे क्योंकि बार में बाहर से किसी तरह की फ़ूड ले आने की मनाही थी। दस बजे के करीब हमारी यह गैंग कार पार्क में आ गई। कार पार्क में काफी लाइट थी। देव ने पकौड़ों का बैग निकाल लिया। दादा जी को गाड़ी में बिठा दिया गया। पकौड़ों को देखते ही सभी टूट पड़े। पकौड़े इतने स्वादिष्ट थे कि खाने से हट नहीं होता था। खा रहे थे और साथ साथ हंस हंस कर बातें हो रही थीं। अब  देव ने विस्की की बोतल निकाल ली और प्लास्टिक के कप जो वह घर से ही ले कर आया था, में डाल डाल सभी को देने लगा। मेरे नाह नाह करने पर भी जबरदस्ती मेरे हाथ में कप थमा ही दिया और बोला, “मासढ़ जी ! आज तो आप नाह कर ही नहीं सकते।”, देव हमेशा मुझे मासढ़ जी कह कर बुलाता था। उस की पत्नी देव को हमेशा कहती कि रिश्ता जो भी हो लेकिन तुम उन से बड़े हो। देव हंस पढ़ता और बोलता,” पर्दा भी तो कोई चीज़ होती है। “, कुछ भी हो देव महफल को गरमा देता था। अब तो देव को मिले बहुत साल हो गए हैं लेकिन रीटा बताती है कि देव अब भी वैसा ही है।
कुछ देर कार पार्क में गुज़ारने के बाद वापस जाने की तयारी हो गई। कमलजीत और उस के भाई घर से आ गए और सभी उन की गाड़ियों  में बैठ गए और देव भी अपनी गाडी में बैठ गिया। देव हमेशा अपनी गाड़ी खुद चलाता था, चाहे उस ने कितनी भी क्यों ना पी हो। जल्दी ही घर आ गए। बैठ कर बातें होने लगीं। हमारी समधन प्रकाश कौर, कुलवंत और कमलजीत की बहनों ने खाना पहले से ही बना कर रखा हुआ था। कुछ ही मिनटों में टेबल खानों से सजा दिया गया, चलो जी अब खाना खाइये, कहते हुए सभी अपनी अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गए। तरह तरह के खाने देख कर भूख भी चमक उठी थी और सभी खाने लगे। अब कोई भी बोल नहीं रहा था जैसे सभी का धियान खानों पर ही हो। कुछ ही देर बाद जब खाना समापत हुआ तो धीरे धीरे सभी हाथ धोने के लिए बाथ रूम की ओर जाने लगे। अब सिटिंग रूम में बैठ कर बातें होने लगीं लेकिन अब सुस्ती सब के चेहरों पर दिखाई दे रही थी। कुलवंत ने आ कर मुझे कहा कि अब हम को चलना चाहिए। अभी बैठो ! बैठो! करते हम तैयार हो गए। अच्छा जी, अब इजाजत दो, सत सिरी अकाल, सत सिरी अकाल कहते हम बाहर आ गए। गाड़ी में बैठ कर कुलवंत ने गाड़ी स्टार्ट की और हम अपने घर की ओर चल पड़े। यह दिन भी  कभी नहीं भूलेगा।
चलता . . . . . . . .

9 thoughts on “मेरी कहानी 135

  • मनमोहन कुमार आर्य

    अभी कुछ ही दिन पहले एक प्रवचन सूना था जिसमे बताया गया था मनुष्य के जीवन सुख, दुःख की तुलना में कई गुना व कही ज्यादा होता है। ईश्वर सुखस्वरुप है और जीवात्मा को जन्म देना उसी का काम है। ईश्वर ने आप सबकी इच्छा पूरी की उसका धन्यवाद है और आपको बहुत बहुत बहुत बधाई। दौहित्र की नौकरी भी लग गई। उसको भी हार्दिक शुभकामनायें एवं आशीर्वाद। सादर नमस्ते एवं धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद ,मनमोहन भाई .

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह सुंदर मार्मिक आत्मकथा आदरणीय नमन स्वीकारें/

    • धन्यवाद राज किशोर जी .

  • धन्यवाद जी ,खूबसूरत कविता के लिए आभार .यह दोहता इस हफ्ते ही काम पर लगा है .डिग्री किये हुए छै महीने हो गए थे लेकिन मन पसंद काम मिल नहीं रहा था . सोमवार छुटी थी और दोहता मेरे लिए स्वीट्स का डिब्बा ले कर आया था . यह काण्ड बिलकुल सही वक्त पर ही आया है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, तब तो सोने पे सुहागा हो गया. हमने बधाई भी सही समय पर लिखी है.

      • बिलकुल सही कहा, आप हमेशा ही सही वक्त पर वधाई दे कर मुझे किर्तारथ बनाते हैं .

      • बिलकुल सही कहा, आप हमेशा ही सही वक्त पर वधाई दे कर मुझे किर्तारथ बनाते हैं .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी,

    आज खुशियों की वेला आई है,

    नानाजी को ढेरों बधाई है.

    खुशियों भरे अति सुंदर व रोचक एपीसोड के लिए आभार.

Comments are closed.