राजनीति

मोदी विरोधियों में गजब की घबराहट

पीएम मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने अपना दो वर्ष का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा करा लिया है। भारतीय जनता पार्टी पूरे उत्साह व लगन के साथ अपना विकास पर्व मना रही है। मोदी सरकार के दो वर्ष पूर्ण होने के बाद भाजपा की पूरे देशभर में दो सौ रैलियां तथा विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन का सिलसिला लगभग शुरू हो गया है, जिसमें भाजपा के मंत्री गण व नेता सरकार की उपलब्धियों का गुणगान कर रहे हैं। इस अभियान में उत्तर प्रदेश सहित वे सभी प्रांत निशाने पर हैं जहां 2017 में विधानसभा चुनाव संभावित हैं। अगला वर्ष देश के राजनैतिक भविष्य के लिए एक बेहद रोमांचक मोड़ लेकर आ सकता है। पीएम मोदी व भाजपा नेतृत्व ने अब असम चुनाव परिणामों के बाद यूपी में पूरी ताकत झोंक दी है तथा कम से कम 45 मंत्रियों को इस काम में लगा दिया है। वहीं दूसरी ओर इस सप्ताह सबसे बड़ी बात यह रही कि जिन प्रातों में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं वहां पर सरकारों ने अपना कार्य भार लगभग संभाल लिया है। मोदी सरकार केे दो वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर देश के विरोधी दल भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं।

विगत 26 मई को कांग्रेस ने 26 स्थानों पर मोदी सरकार के कामकाज को निशाने पर लेते हुए प्रेसवार्ता का आयोजन किया। वहीं दूसरी ओर अन्य विरोधियों नीतिश कुमार, लालू प्रसाद यादव, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, तथा उत्तर प्रदेश जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वहां पर सभी भाजपा विरोधी दलों और नेताओं ने केंद्र सरकार व पीएम मोदी के खिलाफ जमकर भड़ास निकालते हुए सरकार को पूरी तरह से नाकाम बताने का प्रयास किया। लेकिन मोदी सरकार के दो वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर विभिन्न मीडिया संस्थानों व टी वी चैनलों के माध्यम से जो सर्वे करवाये गये हैं उनसे पता चल रहा है कि देशभर में जो मोदी लहर 2014 में चल रही थी वही लहर 2016 में भी विद्यमान है। अधिकांश टी.वी. चैनलों व मीडिया के सर्वे के अनुसार पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ा ही है तथा यदि अभी चुनाव हो जायें तो पीएम मोदी के ही नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार पहले से अधिक सीटें लेकर फिर से वापस आ जायेगी।

एबीपी न्यूज की ओर से कराये गये सर्वे के अनुसार यदि आज की तारीख में चुनाव करवायें जायें तो फिर मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा व उसके सहयोगियों को 342 से भी अधिक सीटें हासिल हो सकती हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 47 प्रतिशत से भी अधिक चढ़ा हुआ है। सर्वे में जनता ने कांग्रेस के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है कि वर्तमान सरकार जो योजनायें लागू कर रही है वे सब यूपीए सरकार की हैं। साथ ही कुछ सर्वेक्षणों में तो देश की 70 प्रतिशत जनता पीएम मोदी को दोबारा सत्ता में देखना चाह रही है। वहीं दूसरी ओर मोदी विराधी नेता सोनिया गांधी की लोकप्रियता केवल 9 प्रतिशत और राहुल गांधी की केवल 8 प्रतिशत तक ही आंकी गयी है। नीतिश कुमार, लालू यादव, मुलायम सिंह, ममता बनर्जी, मायावती, अरविंद केजरीवाल तो लोकप्रियता के मामले में बहुत अधिक पीछे छूट चुके हैं।

लिहाजा इन सभी नेताओं का मोदी से ईष्र्या व द्वेष करना लाजिमी है। यही कारण है कि ये लोग मोदी व उनकी सरकार को पानी पी पीकर कोस रहे हैं। इन दलों को यह अच्छी तरह से पता है कि मोदी सरकार जिस तेजी से काम कर रही है व योजनाओं को धरातल पर लाने का प्रयास कर रही है यदि वह उसमें सफल हो गयी तो इन दलों व नेताओं का 2019 आते-आते राजनैतिक अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। इनमें सर्वाधिक परेशानी का संमय अब गांधी परिवार के लिए ही आने वाला है। गांधी परिवार व पूरी कांग्रेस पार्टी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं तथा वित्त मंत्री अरुण जेतली ने दावा किया है कि वे कांग्रेसी नेताओं के ऊपर लग रहे तमाम भ्रष्टाचार के आरोपों के सबूत संसद के पटल पर रख भी सकते हैं।

यही कारण है कि अब विपक्ष एक मंच पर आना चाह रहा है और फेडरल फ्रंट जैसा मंच बनाकर 2019 मेें मोदी का सामना करना चाहता है। बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ताजपोशी के दौरान सभी मोदी विरोधी नेता एक मंच पर खड़े दिखायी दिये। इस समूह को वित्तमंत्री अरूण जेतली बड़े ध्यान से देख व समझ रह थे। इस अवसर पर मोदी विरोधियों में गजब की घबराहट स्पष्ट रूप से दिखलायी पड़ रही थी। इस अवसर पर लालू यादव व फारुख अब्दुल्ला ने एक स्वर में फेडरल फ्रंट की वकालत की। लालू यादव ने तो यहां तक कह दिया कि यदि समय रहते हुए हम लोग एक नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब भारत टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा। भाजपा व संघ के लोगों को सत्ता से हटाने के लिए समान विचारधारा व धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट होना होगा। हालांकि इस फ्रंट का नेता कौन होगा यह अभी तय नहीं है।

भारतीय राजनीति में इस प्रकार के अवसरवादी व सत्ता लोलुप दलों के बीच गठबंधन की बातें हमेशा से चलती आ रही हैं लेकिन ये कभी भी परवान नहीं चढ़ सकी हैं और न ही भविष्य में चढ़ सकेंगी। कारण यह है कि मोदी विरोधी कुनबे में शामिल दलों व नेताओं का प्रभाव केवल अपने प्रांतों के कुछ हिस्सों व जातिगत समूहों में ही सीमित है। हालिया सर्वे में इस बात की भी जानकारी निकल रही है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा का प्रभाव कुछ नये क्षेत्रों में भी बढ़ रहा है, जिसके कारण ये दल वाकई घबरा गये हैं। इन दलों व नेताओं में कभी भी एकता कायम नहीं हो सकती। ये सभी सत्ता के लालची हैं और वंशवाद, जातिवाद, मुस्लिमपरस्त राजनीति करने वाले नेता हैं। इनका कोई भी विकास का विजन नहीं है। इन दलों के पास कोई नयी विकासवादी सोच नहीं है।

ममता बनर्जी के शपथग्रहण समारोह के दौरान एक बात देखने में आयी है कि ईश्वर और अल्लाह के नाम पर शपथ ली गयी, वहीं दूसरी ओर फारूख अब्दुल्ला ने तो दो कदम आगे बढ़ते हुए राष्ट्रगान का अपमान तक कर डाला। जिस समय सभी नेता राष्ट्रगान के समय खड़े थे उस समय फारूख अब्दुल्ला फोन पर बातें करके राष्ट्रगान का अपमान कर रहे थे। क्या ऐसी विकृत सोच वाले नेता भारतीय एकता को कायम रख सकेंगे। इनमें अधिकांश नेताओं की तो अब उम्र भी ढलान पर है। ये सब अब केवल पीएम मोदी के खिलाफ मीडिया में बने रहने के लिए अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। इन दलों व नेताओं का कोई भविष्य नहीं है, न ही किसी फ्रंट का है।

मृत्युंजय दीक्षित