गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

दुःख है क्या और ये ख़ुशी क्या है ।
या खुदाया ये जिंदगी क्या है ।

जान देकर भी पूरी कर दूंगा
बता तो दे तेरी ख़ुशी क्या है ।

बस अपनी दास्ताँ सुनाता हूँ
नहीं जानता कि शायरी क्या है ।

स्याह रातें अगर नहीं होतीं
ना जान पाते रौशनी क्या है ।

तुम हमारे कभी न बन पाये
चाहतो में मिरी कमी क्या है ।

— धर्म पांडेय