कहानी

परवाज़

            परवाज

आज घर में सभी  कितने खुश थे , किरण का  रिश्ता जो पक्का हो गया था   |  सगाई की रस्म हो  रही  थी  |  नाच, गान, ढोलक , घुँघरू  सबकी आवाज से  घर में रौनक हो गयी थी  , समाँ  बँध  गया था | जैसे ही सगाई की अंगूठी   पहनाने का समय आया और दूल्हा सब के सामने आया , सब के मुँह  से वाह-वाह हो  गयी   | किरण की सगाई एक  पी.  ड्बल्यु .  डी .  इंजीनियर  से  हो   रही थी  | लंबा गठीला शरीर , सांवली सूरत , काले घुंघराले बाल एवं   चेहरे पर घनी मूंछे |  बड़ा ही आकर्षक व्यक्तित्व | उसे देख  किरण की  सहेली से  रहा न गया और कहने लगी  “किरण   तुम्हारा दूल्हा  मिलिन्द किसी नोवेल की कहानी के हीरो जैसा दिख रहा है , बहुत किस्मत वाली हो तुम ! ”  किरण स्वयं भी तो कितनी खुश थी | जैसा वह चाहती थी वैसा ही वर मिला था उसे |   धूमधाम से सगाई की रस्में पूरी हुई और दो महीनों में झटाझट  विवाह  भी |

किरण अब दिल्ली रहने लगी , क्या ठाट बाट  थे उसके   गाड़ी , नौकर -चाकर और बड़ा ही सुन्दर बँगला   |  वह स्वयं भी तो कितनी शौक़ीन  थी , हर समय सजी-धजी रहती | अपने सारे रिश्तेदारों को अपने पास बुलाती और खूब घुमाती- फिराती | एक बार तो उसने अपनी  भाभी  को   भी बुलाया था,  बड़ी ही मौज मस्ती की भाभी और बच्चों ने   |   दिल्ली वालों  की पार्टियों की तो अलग ही  शान होती है , भाभी ने देखा तो देखती ही रह गयी  | भाभी तारीफ़ करती न थकती थी अपनी नन्द के रहन-सहन  की |

अभी कुछ महीने बीते ही थे  कि  किरण गर्भवती हो गयी , ससुराल में तो कोई महिला थी नहीं सो वह अपने जापे  के लिए अपने मायके में ही आ गयी  |

एक-एक दिन करते नौ  माह भी बीत गए | किरण ने एक सुन्दर बेटे को जन्म दिया , मिलिंद  तो अपने बेटे को देख फूला न समाया  और खुशी-खुशी  किरण को लेकर वापिस दिल्ली आ गया |सब कुछ ठीक    ही  चल रहा था  , किरण किसी विवाह के फंक्शन में गयी   हुई  थी |  आज भी वह पूरी दुल्हन की तरह  सजी हुई थी   कि  अचानक  से  फ़ोन आया   और   मालूम  हुआ  कि  मिलिन्द  का एक्सीडेंट  हो गया है |  इतना  सुनते ही किरण के तो होश ही उड़ गए और वह धड़ाम से सोफे पर बैठ गयी |  सभी रिश्तेदारों ने उसे सम्हाला और अस्पताल ले कर गए |वहाँ मिलिंद अपनी अंतिम   साँसे ले रहा था |जाते   ही  डॉक्टर ने उसे मृत घोषित  कर दिया |   किरण   फूट- फूट  कर  रो पड़ी  |  जहाँ  विवाह की खुशियाँ थी वहाँ मातम छ गया था  |  खैर होनी को कौन टाल  सकता था ?  मिलिंद के अंतिम संस्कार की रस्म पूरी की गयी   |

अब  किरण   अपने ससुर  के पास गाँव  जा कर रहने लगी   |कल तक तितली सी खुशमिजाज   किरण  अब हल्के रंग पहनने लगी थी , वह नाजुक फूल की पंखुरी  तो जैसे  मुरझा ही गयी थी   | ससुर को किरण की हालत देख कर बहुत दुःख होता   | किन्तु कर  भी क्या  सकते थे ?   वे तो स्वयं बदहाल थे   | एक साल भी न बीता था कि  ससुर का  बेटे के दुःख  में  इंतकाल हो गया | मुझे अच्छे से याद है  कि  किरण ने मुझे फोन पर बताया था कि  “ऐसा महसूस हो  रहा है कि सर से पिता का साया ही उठ गया है  और बस एक चचेरी सास हैं परिवार में,  वे उसे अपने   साथ ले कर जा   रही हैं” |  चचेरी सास  किरण  को  बहुत लाड प्यार से रखती  , किरण  ने बताया था वह  उसे माँ की कमी भी नहीं महसूस होने देती  |

किरण गाँव में  परिवार के सदस्यों के साथ  पूरी  तरह   रम गयी   थी  |  सास-बहु माँ- बेटी जैसे  रहतीं   |  आज  किरण की चचेरी सास ने उसे  कहा  “किरण तुम   तो  जानती  ही हो   घर में पैसों की कितनी  तंगी है   तुम्हारे  देवर की   नौकरी   के तो कोई ठिकाने   नहीं,   ऊपर से तुम्हारे  ससुर की  तबियत ठीक नहीं रहती   तुम  कुछ  रुपयों  की मदद  कर देती तो बहुत अच्छा रहता  |  किरण ने झट से कहा “हाँ  हाँ  क्यूँ  नहीं   और  किरण   कुछ बीस हजार  रुपये अपनी चचेरी सास  के  लिए बैंक  से  निकाल  कर  ले  आयी  और उनकी   हथेली पर सहर्ष  रख दिए  | सास भी बहुत  खुश हो गयी और अब ये रोज -रोज  का सिलसिला हो गया था | किरण की चचेरी  सास आये दिन  किसी न किसी बहाने किरण से रुपये उधार माँगती  और  लौटाने का नाम   भी न लेती |   अब धीरे धीरे   किरण समझने लगी थी  कि चचेरी सास  क्यूँ  उसे अपने पास में ले कर  आ गयी थी | वर्ना सिर्फ विवाह  के समय मिली चचेरी  बहु को कोई  इतना प्यार देता  है भला ? इस बार जब चचेरी सास ने उस से रुपये उधार माँगे  और  किरण ने   झट से  बैंक  से   नहीं  निकाले तो  चचेरी सास के तेवर बदलते देर न लगी  और वह  आग बबूला हो कहने लगीं  ” देखो बहू  ये तुम्हारे शहरी रंग -ढंग यहां गाँव में नहीं चलने वाले , अपने देवर से ज्यादा घुल  मिल रही हो  , अच्छा लगता है एक विधवा का अपने जवान देवर पर डोरे डालना ?

किरण को तो समझ ही  न  आया कि हुआ क्या है ? वह कुछ कहती उस से पहले ही उसकी चचेरी सास ने उस के पिताजी को फोन कर कहा “ देखिये समधि जी जवान विधवा  बहु को घर में  रखना बहुत  बडी  जिम्मेदारी होती है  और फिर इसके ये सहरी लच्छन  ! यहाँ गाँव  में नहीं चलने वाले , कृपया  कर आप अपनी बेटी को अपने पास ही रखें  |

किरण के पिताजी से अपनी इकलौती बेटी के लिये ये शब्द  बर्दाश्त न हुए  वे हाथ  जोड़ कर  कहने लगे “ठीक  है समधन जी जैसा आप उचित समझें”  सो अब किरण अपने पिताजी के साथ अपने मायके रहने के लिये चली आयी  |वहाँ जा कर किरण  तो और भी ज्यादा उदास हो गयी थी , उसकी माँ  उसे बिन बिंदी , सिंदूर के देखती तो माँ  का  दिल भर आता |

मात्र उनतीस  वर्ष  की ही  तो थी वह , इतनी कम उम्र में तो शौक भी पूरे नहीं  हुए होते हैं   |उसकी सब सहेलियाँ  सजती-धजती और वह एक विधवा की  रंगहीन  ज़िंदगी जी रही थी  |  माँ  से उसकी हालत देखी न जाती  थी  |

उसकी  माँ  उसे बार बार  कहती  “बेटी होनी को तो कोई नहीं  टाल  सकता लेकिन तुम थोड़ा अपने बारे में भी सोचो | इस तरह    अंदर ही अंदर घुलती रहोगी तो कैसे काम चलेगा ?  ज़रा   अपने बच्चे  के बारे  में भी सोचो और अभी  तुम्हारी पूरी जिंदगी सामने पड़ी  है  हिम्मत हारने से तो काम  नहीं चलने वाला है न   | थोड़ा बन सँवर  लिया  करो  , बिंदी  सिन्दूर न सही  कपड़े  तो अच्छे  रंग के पहन सकती हो” |मन  ही मन किरण को माँ की बात ठीक लग रही थी  |  कितनी  बुझ सी गयी थी वह गाँव में रह कर , सफेद कपड़े पहन कर , और सामाजिक मेल-मिलाप  से दूर ! फिर भी चचेरी सास  ने  तो  कलंक  ही लगाया उस पर  | इस से तो अच्छा होता कि  वह गाँव न  जाती और अपने पति के बदले  सरकारी दफ्तर में कोई नौकरी ही कर लेती | सरकार ने ऐसा प्रावधान तो किया ही है  कि  पति के न रहने पर उसकी पत्नी को नौकरी मिल जाती है  वह मन ही मन सोचने लगी कि  क्या अब दो वर्षों के बाद उसे नौकरी मिल सकेगी ?

माँ  से पूछा तो माँ  ने भी कहा तुम ठीक  ही कह रही हो कहीं नौकरी कर लोगी तो  दो पैसे  भी हाथ में  आएँगे   और तुम्हारा थोड़ा मन भी लगा रहेगा |    रही बच्चे  की चिंता तो  हम  हैं  न संभालने   के लिए   |   अब किरण  अपने पति के  दफ्तर  में दिल्ली जा कर बात कर  आयी कि  क्या  उसे अपने पति की जगह नौकरी मिल सकती है ?  मालूम हुआ  कि हो तो सकता है किन्तु  अब इतने समय के बाद फिर से कागजी कार्यवाही में समय लगेगा  |  फिर   भी किरण ने कागजी कार्यवाही की शुरुआत की  और अब उसे रोज सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाने  पड़ते |   बेचारी    सुबह    से शाम  भूखी- प्यासी  कभी  अपने पति  के अफसरों से  मिलती  तो कभी दफ्तर के बाबुओं से |  लेकिन साहब यहाँ तो  मरे जानवर के माँस  की बू आते ही गिद्ध जमा हो जाते हैं  उसकी  बोटी को नोच नोच कर खाने के लिए |  सो हर कोई   उसकी मदद  को  तो  तैयार  हो जाता किन्तु किसी   न किसी तरह उसे छूने की कोशिश जरूर करता और किरण अब  इस बात को अच्छी तरह समझने लगी थी   कि  यहाँ  बिना फ़ायदा उठाये कोई काम नहीं करता |  सो बेचारी  रात को घर आकर कमरा बंद कर के दो आँसू  बहा लेती  और अपने बेटे को सीने से लगा कर सो जाती | मैं कभी-कभी उस से मिलती और देखती कि   कल तक चिड़िया सी चहकने वाली किरण धीरे-धीरे पत्थर की मूरत होने लगी थी |

तभी किरण को  एक दिन दफ्तर में एक बुजुर्ग महिला मिली जिसने किरण को उसके पति के   बारे में पूछा |  इतने समय के बाद जब किसी ने मिलिंद  के बारे में पूछा तो किरण ने भी सब कुछ बता अपना मन हल्का कर लिया |    उस  महिला  ने  किरण  का पता   ठिकाना भी ले   लिया और   अपने  बेटे  के  बारे में बताया जो कि तलाकशुदा था   |  किरण उनका इशारा समझ गयी थी,  किन्तु उन्हें  फिर मिलेंगे कह  घर आ गयी  |  एक  दिन वह बुजुर्ग महिला किरण की माँ से मिलने किरण के घर आ गयी और अपने  तलाकशुदा बेटे की शादी  किरण से करने  का प्रस्ताव  किरण की माँ के सामने   रख दिया |

किरण की माँ  को  उनकी  बात सुनते ही बड़ा  झटका लगा   वह तो सोच में  पड़ गयी  कि  विधवा बेटी जिसका एक बच्चा  भी है उसका पुनर्विवाह ? उन्होंने तो सोचा भी न था कि  अभी  जवाँई   को गुजरे दो वर्ष   हुए हैं और  दहलीज पर दूसरा   जवाँई   ?   सो उन्होंने उस बुजुर्ग महिला को हाथ जोड़ कर कह दिया “माफ़ कीजिये  बहिन जी अभी  तो हम एक सदमे से उबर  भी नहीं पाये हैं ख़्वाबों में भी हम ऐसा सोच भी नहीं सकते   |

इधर घर में किरण की भाभी ने जैसे ही यह बात  सुनी  सोचने लगी ” ननद को सारी जिंदगी घर में  रखने से अच्छा है कि उसका पुनर्विवाह कर दिया जाए , वरना उनकी भी तो जिम्मेदारी बढ़ है जाती है  और भगवान जाने वह बाबूजी की  जायदाद में से हिस्सा माँग  बैठे तो ? आजकल तो बेटियाँ  भी हिस्सा माँगने लगी हैं ”   |

सो रात को जब किरण का बड़ा भाई घर आया,  खाना  खाने के बाद वह कहने लगी ” सुनो जी आज कोई बुजुर्ग महिला दीदी के लिए पुनर्विवाह का रिश्ता ले कर आयी थी , देखने से तो भली ही लगती थी , शायद माँ  को  तो उनकी बात नहीं जमी,  किन्तु इसमें हर्ज ही क्या है ? आखिर कब  तक दीदी पहाड़ जैसी जिंदगी अकेले गुजरेगी ?  और फिर अभी उनकी सजने-धजने की उम्र है ,  फिर से   घर बँध  जाता तो अच्छा ही रहता ”  किरण के भाई को भी अपनी पत्नी की बात ठीक ही लगी  सो वह भी माँ  को समझाने लगा ” माँ,   दीदी के पुनर्विवाह में कोई  हर्ज नहीं  , अब ज़माना बदल चुका है और फिर आगे से रिश्ता आ रहा है तो हमें मौक़ा नहीं चूकना चाहिए , वरना एक विधवा से कौन विवाह करेगा भला ?  माँ  , मैं तो कहता हूँ तुम किरण को राजी कर लो “माँ  बोली हाँ  बेटा देखती हूँ”    |

इधर  किरण अपने पति के बदले नौकरी पाने की कोशिश करते रोज दफ्तरों के चक्कर लगा रही थी तो आज जब उसी कार्य के सिलसिले में एक बाबू से मिलना पड़ा तो उसने तो साफ शब्दों में कह दिया “देखिये मैडम आपका काम तो मैं खटाखट करवा दूँगा   किन्तु  आप भी मेरे लिए कुछ तो कीजिये    |

इतना कह  उस ने किरण को दैहिक सम्बन्ध के लिए खुला आमंत्रण दे डाला  , उसकी  बात  सुन  किरण की आँखों से  आँसू  बह निकले और वह उसी समय वहाँ से  घर को  रवाना हो गयी , वह मन ही मन सोच रही थी “हे भगवान  और कितना  दुख ? किस पाप की सजा दे रहा है उसे ? “आज पहली बार उसे अपने पति का न होना बहुत खल रहा था | वह मन ही मन सोचने लगी विधवा होना क्या गुनाह  है ? क्यों पिता की उम्र के लोग भी मौका पाते ही फायदा उठाने से बाज नहीं आते ?  वह घर पहुँच कर कमरा बंद कर बैठ गयी और आज जी भर कर रो लेना चाहती थी |  काफी देर तक उसका दरवाजा बंद देख माँ  को चिंता हुई और  उन्होंने  किरण को पुकारा  “ बेटी किरण दरवाजा खोलो”   किरण ने दरवाजा खोला और अपनी माँ  से लिपट कर रो पड़ी  |  माँ ने भी घबरा कर पूछा कि  आखिर हुआ क्या ?   तो किरण ने माँ को सब कुछ बताया |  माँ  ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा  “डरो नहीं बेटी  अभी हम हैं न , चलो थोड़ा खाना खा लो”     |

आज  किरण तो क्या उसकी माँ  की  हिम्मत भी जवाब दे गयी थी  वह मन ही मन सोचने लगी कि उसका बेटा ठीक ही  कह रहा था   |

किरण का फिर से घर बसा दिया जाए तो अच्छा ही रहेगा , मंगलसूत्र गले में हो तो लोग बुरी  नजर से तो नहीं   देखेंगे  और फिर पूरी जिंदगी दर-दर की   ठोकरें खाने से तो अच्छा है |  आखिर  माता-पिता कितने दिन साथ देंगे  ? सो आज जब किरण के पिता आये तो उसकी माँ ने उन को सारी बात समझाते हुए किरण के पुनर्विवाह  के लिए राजी कर  लिया  |   अगले दिन माँ  ने किरण को भी पुनर्विवाह के बारे में बताया तो एक बार तो किरण को बड़ा अजीब लगा किन्तु उस बाबू वाले किस्से को सोच कर उसने भी हामी भर दी |   फिर साधारण रूप से किरण का पुनर्विवाह अनिल  के साथ कर दिया गया |  थोड़े दिन तो सब ठीक ठाक चला किन्तु अब किरण और अनिल में किरण के बच्चे को ले कर अनबन होने लगी   |  बच्चा ज़रा उछल कूद करे तो अनिल को बर्दाश्त न हो  , यदि वह टी.  वी. देखने की जिद्द करे तो झगड़ा |  अनिल कहता किरण तुमने इसे बहुत सर चढ़ा  रखा है , इसे अनुशासित करना जरूरी है  और किरण सोचती की यदि अनिल का अपना बच्चा होता तो भी क्या वह ऐसे ही व्यवहार  करता ?  ऐसा चलते एक दिन दोनों का झगड़ा हो गया  और अनिल ने किरण को एक जोरदार  तमाचा जड़ दिया |  उस दिन तो किरण चुप रह गयी , किन्तु अब ये रोज-रोज का सिलसिला हो गया था |  जब किरण की माँ  को इस बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने किरण की सास को बताया |  वे कहने लगी कि  पति-पत्नी में  तो यह सब चलता ही रहता है किन्तु हद तो उस दिन   हो गयी जब अनिल ने उसे लातों घूँसों  से मारा और कह दिया “एक तो विधवा से शादी की , वह भी एक बच्चे की माँ !  उस का गुण  एहसान तो कुछ नहीं ऊपर से रोज की मुसीबत तुम्हारा ये बच्चा !  इतना सुन किरण से रहा न  गया और वह पूछ बैठी तो यह शादी क्या सिर्फ मेरी  जरूरत थी ? लेकिन अनिल कहाँ सुनने वाला था यह सब ?  वह तो लगा चीखने चिल्लाने “निकल जाओ मेरे घर से अभी , कोई जगह नहीं तुम्हारे लिए  यहाँ   “अनिल की माँ  यह सब होते देख रही थी और वह अपने बेटे को चीखते हुए नहीं देख सकती थी , उसी के लाड़ प्यार ने ही तो उसे सर चढ़ा रखा था |  और  शायद इसी कारण उसकी पहली पत्नी उसे छोड़ गयी थी |

किरण की सास ने किरण को साफ कह दिया कि यदि वह उसके बेटे से निभा नहीं सकती तो अपने मायके चली जाये और लगे हाथ किरण की माँ को भी कह दिया कि वह अपनी बेटी को समझाये | जब किरण की माँ को मालूम हुआ कि अनिल जब-तब किरण  से मार पिटाई  करता है तो उन्होंने भी अनिल की माँ को कहा कि “बहिन जी अपनी बेटी को मार खाने के लिये नहीं भेजा था आपके पास “ इतना सुनते ही किरण  की सास कहने लगी “बहिन जी आप तो बात का बतंगड़ बना रही हैं | यदि आप को इतनी ही चिंता है तो अपनी बेटी को ले जायें”  | किरण की माँ समझ चुकी थी कि यदि किरण अनिल के घर में रहेगी तो उसे वहाँ रोज मार खा कर ही रहना होगा | सो उन्होंने उसे वापस बुलाने में ही समझदारी समझी | इसके बाद किरण व अनिल का तलाक करवा दिया गया ताकि दोनों  अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जी सकें|

लेकिन कल तक  जिस किरण के घर में होने से घर  चहक उठता था वही  किरण कितनी शांत, उदास रहने लगी थी मानो मौन व्रत धारण कर लिया हो |

अब किरण के सामने समस्या थी पैसों की , क्यूँकि  सरकार का एक नियम है यदि कोई विधवा पुनर्विवाह कर ले तो उसे उसके पति की  पेंशन मिलनी  बंद हो जाती  है   |  अब  उस का  खर्च वहन करना उसके नये पति की जिम्मेदारी होती है | सो किरण की तो पेंशन भी बंद हो गयी थी |  किरण ने मिलिंद के दोस्तों से पूछ्ताछ कर फिर से पेंशन शुरू करवाने की कोशिश करना शुरू किया | किंतु इस बार उसने अपने हौसले बुलंद कर लिये थे और ठान लिया था कि वह हिम्मत नहीं हारेगी |

इधर उसकी भाभी समझ चुकी थी कि अब ननद बाई सदा के लिये आ गयी है| सो अब भाभी को ननद फूटी आँख न सुहाती | यदि दोनों के बच्चों में झगड़ा हो जाये तो  भाभी  सारा घर सिर पर उठा लेती | और एक दिन तो हद ही हो गयी जब भाभी ने कह दिया “अपने पति को तो खा गयी अब हमें भी चैन से रहने नहीं देती “| किरण बार-बार माँ को कहती “माँ मैं कहीं किराये पर घर ले कर रह लेती हूँ आखिर कब तक आप लोगों पर बोझ बन कर रहूंगी”   किंतु किरण की माँ उसे बच्चे का  वास्ता दे कर कहती  “बेटी बच्चा छोटा है , तुम्हें तो कुछ न कुछ बाहर का काम लगा ही  रहता है इसे किसके भरोसे छोड़ोगी ? इसी लिये भाभी की  बात का बुरा न माना करो |

जब किरण ने मुझे यह सब बताया मैं मन ही मन सोच रही थी कि दुनिया चाहे कितने भी दुख दे किंतु एक माँ कैसे अपने जिगर के टुकड़े को दर-दर की  ठोकरें खाने के लिये छोड़ दे ?  यही हाल किरण की माँ का था | और कहीं वह अपनी जगह सही भी थीं  |

बेटी   कुँवारी हो तो उसके ब्याह की फिकर होती है पर एक विधवा बेटी को ताउम्र घर में रखना माता-पिता के लिये इतना दुखदायी ?

किरण ने दौड़-भाग करके अपने पति की पेंशन तो शुरू करवा ली  थी और उसमें उसका साथ दिया था मिलिंद के दोस्त ने |आज वह बहुत खुश थी और तभी   किरण को  मिलिंद के दोस्त के  भाई के   विवाह का  आमंत्रण प्राप्त हुआ | किरण की खुशी दोहरी हो गयी  थी | अपने पति के पुराने दोस्तों से जो मिलने वाली थी | सो वह बाजार गयी , अपने बच्चे के लिये कपड़े,जूते स्वयं के लिये नयी साड़ी,चप्पल,  मेचिंग का  पर्स आदि खरीद कर ले आयी | जैसे ही उसने अपने बाबूजी को  दिखाने के लिये सब सामान खोला , भाभी ने देखा और झट से एक ताना मार ही दिया “ माँ दीदी को कहिये मर्यादा में रहे , एक विधवा क्या इतना साज श्रिंगार करती अच्छी दिखती है ? अब किस पर डोरे डालने का इरादा है ? ये चमकते रंग की साड़ी , पर्स !

इतना सुनते ही आज किरण की माँ अंदर तक  तिलमिला गयी और बोली ”बहु अपनी जबान को लगाम दो , एक तो भगवान ने पहले ही इस से सारी खुशियाँ छीन लीं ऊपर से तुम भी ताने दे रही हो ?तुम तो इस घर की सदस्य हो , तुम्हें तो इसकी खुशी में खुश होना चाहिये | पर भाभी कहाँ चुप रहने वाली थी | कहने लगी “माँ आप मेरा तो मुँह बंद करवा देंगी किंतु इस समाज का क्या करेंगी ? बाहर जाओ तो कैसी-कैसी बातें सुनने  मिलती हैं ?

वाह्ह्ह रे समाज ! तेरे नियम बड़े निराले , यदि पुरुष विधुर हो जाये तो पुनर्विवाह कर वापिस वैसे का वैसा और विवाह  न भी करे तो भी उसके  लिये समाज के कोई नियम नहीं  |और एक  विधवा  औरत की जिंदगी जानवर से भी बद्तर ?

किरण सोच भी नहीं सकती थी कि जो भाभी मिलिंद के रहते दिल्ली उसके घर इतनी मौज मस्ती करके जाती थी,  उसके मुँह से यह सब सुनने को मिलेगा |

आज उस ने तय कर लिया था कि वह अब इस घर में न रहेगी | और अपने  माँ व बाबूजी को समझा दिया था कि वे उसकी चिंता छोड़ दें | उसके रहने से भाई भी उखड़ा-उखड़ा रहता है | सो अब उसने किराये पर घर ले कर रहना शुरू किया | कुछ ही  दिनों में  उसने अपना  एक बुटीक  खोल लिया और जी जान से मेह्नत कर उसे एक साल में बहुत अच्छा कर लिया | सारे दिन औरतों का  आना जाना- लगा रहता जिससे उसका मन भी लग जाता और आमदनी भी हो जाती | घर भी सम्भल जाता और शाम के समय वह अपने बेटे को पार्क में ले जाती  | वहाँ दूसरे  बच्चों के साथ खेलती, वाद-विवाद प्रतियोगिता करवाती और कभी-कभी  वृक्षारोपण  का कार्यक्रम  भी रखती |उसे सरकारी  दफ्तरों में काम के तरीकों की  खासी जानकारी हो चुकी थी  सो  अन्य लोगों को जब ऐसी जरूरत होती तो वह उचित सलाह  भी दे  देती | और यदि कोई असहाय महिला दिखती उसकी तो  वह जी जान से मदद करती | कुल मिला कर कल तक दर-दर की ठोकरें खाने वाली किरण आज अपनी एक नयी पह्चान बना चुकी थी | अब वह एक बुटीक की मालकिन  होने के साथ-साथ एक समाज सेविका के नाम से भी जानी-जाने लगी थी | आये दिन अखबारों में उसके फोटो छपने लगे थे  |पत्र-पत्रिकाओं में उसके इंटरव्यू आते |

इसी बीच उसके माता-पिता तो बूढे हो कर स्वर्गवासी  हो चुके थे , किंतु जाते-जाते उसे हजारों आशीर्वाद दे गये थे  “भगवान तेरे प्रयास  को परवाज दे और तेरी गति में  कोई अवरोध न आये  , तू आज़ाद परिंदों की तरह स्वच्छंद रूप से खुले आसमान में उड़े”  |उन्हीं के आशीर्वाद से   किरण दिन-प्रतिदिन आसमाँ की ऊँचाइयों  को छू रही थी | उसका बेटा भी बहुत होनहार और हर क्षेत्र में अव्वल निकला| और उच्च शिक्षा के लिये विदेश चला गया |

और जब मैं उसे इस मुकाम पर पहुँचने के बाद मिली मेरी खुशी का ठिकाना न था  | किरण समाज के सामने एक मिसाल थी कि औरत किसी से कमजोर नहीं | यदि किसी स्त्री के पति की किसी कारणवश मृत्यु  हो जाये तो  स्त्री का  क्या दोष है ? समाज क्यूँ उसे कोसता है ? क्यूँ उस पर लोग गिद्ध  दृष्टि लगाये रखते हैं ? क्यूँ उसे हर गलती का दोषी ठहराया जाता है ? और क्यूँ वह अपने ही घर में बोझ समझी जाती है ? क्यूँ हमारे समाज के नियम मजबूर करते हैं एक विधवा स्त्री को रंग हीन जीवन जीने के लिये ?  क्यूँ उसे स्वतंत्रता नहीं सामान्य जीवन जीने की ?  जबकि वही समाज पुरुष के लिये विधुर होने पर कोई नियम नहीं बताता |  लेकिन किरण के हौसलों और इरादों ने यह सिद्ध कर दिया था कि समाज के ये नियम झूठे हैं , व्यर्थ है  |खोट विधवा में नहीं हमारे मन में है  |क्यूँ पुरुष विधवा को मुफ्त का माल समझ कर मजे उड़ा लेना चाह्ता है   जबकि उस विधवा महिला को  मदद की आवश्यकता हो ?  यह पुरुष की नीचता है , विधवा की नहीं |और उसकी इस नीचता के फलस्वरूप  विधवा के जीवन को रंगहीन कर दिया जाता है |

क्या ये नियम इश्वर ने बनाये हैं ? पति की मौत के बाद पत्नि की भूख-प्यास तो इश्वर बंद नहीं करता , उसकी साँसे भी नहीं रोकता , उसकी प्रजनन क्षमता में कोई कमी नहीं आती , और देह की भूख क्या उसे नहीं सताती ? क्यूँ  नहीं सोचा जा सकता उसके पुनर्विवाह  के बारे में ? और यदि पुनर्विवाह हो भी जाये  फिर भी उसे परिवार वाले विधवा कह क्यूँ कोसते है ? पति के न रहने पर भी  उसे अपने बच्चों का पालन पोषण तो करना ही होता है | फिर ये कैसा समाज है जो नियमों की आड़ में एक जीती जागती औरत को रास्ते का पत्थर बना  देता है,  जिसे कोई भी आये और एक ठोकर मार दे | क्या  हमें इस सोच को  बदलना नहीं चाहिये ? क्या हमें फिर किसी किरण को दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर होने देना चाहिये ? हर महिला एक किरण बन सकती है , आवश्यकता है तो सिर्फ समाज को अपना नजरिया बदलने की |

रोचिका शर्मा, चेन्नै

रोचिका शर्मा

परिचय नाम : रोचिका शर्मा (खांडल) जन्मतिथि: 14/05/72 जन्मस्थान: बृंदावन (उ. प्र.) शिक्षा: एलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग, DNIIT टेलिमॅटिक्स इंडस्ट्री में सात वर्ष इंजिनियर के पद पर कार्यरत रही वर्तमान : डाइरेक्टर सूपर गॅन ट्रेडर अकॅडमी प्राइवेट लिमिटेड ( Director Super Gann Trader Academy ) www.tradingsecret.com प्रकाशन: कविताएँ, आलेख, कहानी , ग़ज़ल , बाल कविताएँ एवं कहानियाँ 1. दैनिक भास्कर समाचार पत्र ग्रुप की पत्रिका " अहा ज़िंदगी " 2. गृहशोभा हिन्दी पत्रिका ( दिल्ली प्रेस) 3. सरिता हिंदी पत्रिका ( दिल्ली प्रेस) 4. ट्रू मीडीया 5. अंजुम मॅगज़ीन 6. राजस्थान पत्रिका समाचार पत्र 7. हमारा मेट्रो समाचार पत्र 8. दैनिक समाचार पत्र “लोकजंग” 9. जयपुर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र "नॅशनल दुनिया " 10. हस्ताक्षर वेब मॅगज़ीन 11. हिन्दी मासिक पत्रिका "हितेषी" 12. काव्यकोष 13. राष्ट्रीय बाल मासिक "बच्चों का देश " 14. अंतरराष्ट्रीय मासिक ई पत्रिका "जनकृति" 15. आज़ाद विचार मासिक पत्रिका 16. मेडिटेक पत्रिका 17. अटूट बंधन ब्लॉग 18. राजधानी दिल्ली से प्रकाशित राष्ट्रीय मासिक पत्रिका "ललकार टुडे" 19. मुम्बई से प्रकाशित मासिक पत्रिका "जय-विजय" 20. भोपाल से प्रकाशित मासिक पत्रिका "देखो भोपाल" 21. सीकर से प्रकाशित " शिखर विजय " 22. दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र "हमारा पूर्वांचल " 23. जयपुर से प्रकाशित पत्रिका "कृषि गोल्ड्लाइन" 24. रावतसर , राजस्थान से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र "प्रभात केसरी " 25. वेबदुनिया 26. झाँसी से प्रकाशित " ग्रामोदय विजन " 27. भारत सरकार द्वारा प्रकाशित पत्रिका “समाज कल्याण ” 28. भोपाल से प्रकाशित मध्य प्रदेश जनसंदेश “शब्द रंग “ सम्मान: काव्यकोष में फ़रवरी माह का " सर्वश्रेष्ठ कवि" चेन्नई स्थित " बाबा जी विद्याश्रम " में हिन्दी दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित हुई एवं दहेज प्रथा पर आधारित वाद-विवाद प्रतियोगिता में निर्णायक मंडल में शामिल हुई तथा विद्यार्थियों को दहेज प्रथा की बुराइयाँ समझाते हुए कन्या भ्रूण हत्या की जानकारी से अवगत किया कविता पाठ : शहीद सुभाष शर्मा श्रद्धांजलि कार्यक्रम में कविता पाठ पता : Rochika Sharma F - 206 Ceebros Belvedere Model School Road Kumarsamy Nagar Opposite Nilgiris Shollingnallore Chennai -600119 ई- मेल: happyrochika@gmail.com फोन : 9597172444

One thought on “परवाज़

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    समाज की कड़वी सच्चाई सजीव चित्रण

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